Chapter 8 जित-जित मैं निरखत हूँ (साक्षात्कार) Bihar Board Class 10 Hindi Solutions
Bihar Board class 10th Hindi Godhuli Bhag 2 Solutions गद्य खण्ड
Table of Contents
Godhuli Hindi Book Class 10 Solutions Bihar Board
गोधूलि भाग 2 प्रश्न उत्तर Class 10 Hindi
गद्य खण्ड पाठ 8: जित-जित मैं निरखत हूँ (साक्षात्कार)
[11:29 am, 19/9/2024] Aftab: [12:47 pm, 19/9/2024] Aftab:Bihar Board Class 10 Hindi जित-जित मैं निरखत हूँ Text Book Questions and Answers
वोध और अभ्यास
पाठ के साथ
प्रश्न 1. लखनऊ और रामपुर से बिरजू महाराज का क्या संबंध है ?
उत्तर-
लखनऊ में बिरजू महाराज का जन्म हुआ था। और बहनों का जन्म रामपुर में हुआ था। रामपुर में बिरजू महाराज काफी दिन तक रहे।
प्रश्न 2. रामपुर के नवाब की नौकरी छुटने पर हनुमान जी को प्रसाद क्यों चढ़ाया ?
उत्तर-
रामपुर के नवाब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया क्योंकि महाराज जी छह साल की उम्र में नवाब साहब के यहाँ नाचते थे। अम्मा परेशान थी। बाबूजी नौकरी छूटने के लिए हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाते थे। नौकरी से जान छूटी इसलिए हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया गया।
प्रश्न 3. नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े और वहाँ किनके सम्पर्क में आए ?
उत्तर-
नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज दिल्ली में निर्मला जी के स्कूल हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक से जुड़े। वहाँ वे कपिला जी, लीला कृपलानी आदि के संपर्क में आये।
प्रश्न 4. किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला?
उत्तर-
कलकत्ता में बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला। वहाँ शम्भू महाराज चाचा जी और बाबू जी दोनों नाचे।
प्रश्न 5. बिरजू महाराज के गुरु कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर-
बिरजू महाराज के गुरु उनके बाबूजी थे। वे अच्छे स्वभाव के थे। वे अपने दुःख को व्यक्त नहीं करते थे। उन्हें कला से बेहद प्रेम था। जब बिरजू महाराज साढ़े नौ साल के थे, उसी समय बाबूजी की मृत्यु हो गई। बिरजू महाराज को तालीम बाबूजी ने ही दिया।
प्रश्न 6. बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा किसे और कब देने शुरू की?
उत्तर-
बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा रश्मि जी को करीब 56 के आसपास जब उन्हें सीखने वाले की खोज थी, देनी शुरू की। उस समय महाराज को सही पात्र की खोज थी।
प्रश्न 7. बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुःखद, समय कब आया ? उससे संबंधित प्रसंग का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जब महाराज जी के बाबूजी की मृत्यु हुई तब उनके लिए बहुत दुखदायी समय व्यतीत हुआ। घर में इतना भी पैसा नहीं था कि दसवाँ किया जा सके। इन्होंने दस दिन के अन्दर दो प्रोग्राम किए। उन दो प्रोग्रामों से 500 रु० इकट्ठे हुए तब दसवाँ और तेरह की गई। ऐसी हालत में नाचना एवं पैसा इकट्ठा करना महाराजजी के जीवन में सबसे दु:खद समय था।
प्रश्न 8. शंभू महाराज के साथ बिरजू महाराज के संबंध में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
शंभू महाराज के साथ बिरजू महाराज बचपन में नाचा करते थे। आगे भारतीय कला केन्द्र में उनका सान्निध्य मिला। शंभू महाराज के साथ सहायक रहकर कला के क्षेत्र में विकास किया। शम्भू महाराज उनके चाचा थे। बचपन से महाराज को उनका मार्गदर्शन मिला।
प्रश्न 9. कलकत्ते के दर्शकों की प्रशंसा का बिरजू महाराज के नर्तक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
कलकत्ते के एक कांफ्रेंस में महाराजजी नाचे। उस नाच की कलकत्ते के श्रोताओं दर्शकों ने प्रशंसा की। तमाम अखबारों में छा गये। वहाँ से इनके जीवन में एक मोड़ आया। उस समय से निरंतर आगे बढ़ते गये।
प्रश्न 10. संगीत भारती में बिरजू महाराज की दिनचर्या क्या थी?
उत्तर-
संगीत भारती में प्रारंभ में 250 रु० मिलते थे। उस समय दरियागंज में रहते थे। वहाँ से प्रत्येक दिन पाँच या नौ नंबर का बस पकड़कर संगीत भारतीय पहुँचते थे। संगीत भारती में इन्हें प्रदर्शन का अवसर कम मिलता था। अंततः दुःखी होकर नौकरी छोड़ दी।
प्रश्न 11. बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते थे।
उत्तर-
बिरजू महाराज सितार, गिटार, हारमोनियम, बाँसुरी, तबला और सरोद आदि बजाया करते थे।
प्रश्न 12. अपने विवाह के बारे में बिरजू महाराज क्या बताते हैं ?
उत्तर-
बिरजू महाराज की शादी 18 साल की उम्र में हुई थी। उस समय विवाह करना महाराज अपनी गलती मानते हैं। लेकिन बाबूजी की मृत्यु के बाद माँ ने घबराकर जल्दी में शादी कर दी। शादी को नुकसानदेह मानते हैं। विवाह की वजह से नौकरी करते रहे।
प्रश्न 13. बिरजू महाराज की अपने शागिर्दो के बारे में क्या राय है?
उत्तर-
बिरजू महाराज अपने शिष्या रश्मि वाजपेयी को भी अपना शार्गिद बताते हैं। वे उन्हें शाश्वती कहते हैं। इसके साथ ही वैरोनिक, फिलिप, मेक्लीन, टॉक, तीरथ प्रताप प्रदीप, दुर्गा इत्यादि को उन्होंने अपना प्रमुख शार्गिद बताया है। वे लोग तरक्की कर रहे हैं, प्रगतिशील बने हुए हैं, इसकी भी चर्चा भी उन्होंने किया है।
प्रश्न 14. व्याख्या करें
(क) पांच सौ रुपए देकर मैंने गण्डा बंधवाया।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जित-जित मैं निरखत हूँ’ पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध बिरजू महाराज से है।
बिरजू महाराज को शिक्षा उनके पिताजी से ही मिली थी। वे ही उनके आरंभिक गुरु थे। गुरु-दक्षिणा में पिताजी ने अम्मा से कहा कि जबतक तुम्हारा लड़का नजराना यानी गुरु दक्षिणा नहीं देगा तबतक मैं उसे गण्डा नहीं बांधूंगा। बिरजूजी को 500/- पाँच सौ रुपये के दो प्रोग्राम मिले थे। जब बिरजूजी ने 500 रुपये पिताजी को दिया, तभी पिताजी ने गंडा बाँधा। उन्होंने कहा कि यह दक्षिणा मेरी है अतः, इसमें से एक भी पैसा नहीं दूंगा। मैं इसका गुरु हूँ और इसने नजराना मुझे दिया है तब 500 रुपये देकर बिरजूजी ने अपने पिता से गंडा बंधवाया।
इन पंक्तियों से आशय यह झलकता है कि गुरु-शिष्य की परंपरा बड़ी पवित्र परंपरा है। इसकी मर्यादा रखनी चाहिए। तभी तो पिता-पुत्र का संबंध रहते हुए बिरजू महाराज के पिताजी ने गुरु-शिष्य का संबंध रखा, पिता-पुत्र का नहीं। गुरु-दक्षिणा में 500/- रुपये लेकर ही गंडा बाँधा। इस प्रकार गुरु की महिमा बड़ी है। मर्यादायुक्त है, उसकी रक्षा होनी चाहिए।
(ख) मैं कोई चीज चुराता नहीं हूँ कि अपने बेटे के लिए ये रखना है, उसको सिखाना है।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक से ‘जित जित मैं निरखत हूँ’ पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध बिरजू महाराज के गुरु-शिष्य संबंध से है। जब बिरजूजी किसी को नृत्य सिखाते थे तो कोई भी कला चुराते नहीं थे। यानी लड़का-लड़की का भेदभाव नहीं रखते थे। समान व्यवहार और समान शिक्षा देते थे। यह नहीं कि किसी को किसी भाववश कुछ सिखाया और कुछ चुरा लिया। अपने बेटे और अन्य शिष्यों में भी कोई भेदभाव नहीं रखते थे।
उनकी शिष्यों के प्रति उदार भावना थी और भीतर मन में किसी भी प्रकार की कलुषित भावना नहीं थी। उनमें यह भेद नहीं था कि बेटे के लिए अच्छी चीजों को चुराकर रखना है, दूसरों को आधी-अधूरी शिक्षा देनी है। इन पंक्तियों में बिरजूजी के मनोभावों का पता चलता है। उनमें पुत्र-शिष्य का लड़का-लड़की का भेदभाव नहीं था। विचार में पवित्रता और गुरु की सदाशयता थी।
(ग) मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूँ। उस नाचने वाले का।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जित-जित मैं निरखत’ हूँ। पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध लेखक के नृत्य और उनके व्यक्तिगत जीवन से है। बिरजूजी का कहना है कि मेरे नाच पर बहुत लोग खुश हो जाते हैं, देखने आते हैं, ये मेरे चाहनेवाले हैं, मरे आशिक हैं। लेकिन फिर बिरजू महाराज स्वयं को प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि मेरा क्या? लोग तो मेरे
नृत्य की वजह से मेरी तारीफ करते हैं, मुझे चाहते हैं। मेरे और लोगों के बीच जो प्रेम-संबंध है वह तो नाच के कारण है। उसमें मैं कहाँ। वहाँ तो कला है, नाच है। मैं तो उस नाच का असिस्टेंट हूँ। सहायक हूँ।
इन पंक्तियों में बिरजूजी अपने को और नाच के बीच लोगों के प्यार, स्नेह, सम्मान की चर्चा करते हुए कहते हैं कि सम्मान मेरा नहीं मेरे नाच का है। मैं तो उसका सहायक हूँ। इस प्रकार कला या गुण सर्वोपरि है। आदमी कुछ नहीं है। उसकी गुणवत्ता की पूजा होती है, सम्मान मिलता है।
प्रश्न 15. बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज किसको मानते थे?
उत्तर-
बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी अम्मा को मानते थे। जब वे नाचते थे और अम्मा देखती थी तब वे अम्मा से अपनी कमी या अच्छाई के बारे में पूछा करते थे। उसने बाबूजी से तुलना करके इनमें निखार लाने का काम किया।
प्रश्न 16. पुराने और आज के नर्तकों के बीच बिरजू महाराज क्या फर्क पाते हैं ?
उत्तर-
पुराने नर्तक कला प्रदर्शन करते थे। कला प्रदर्शन शौक था। साधन के अभाव में भी उत्साह होता था। कम जगह में गलीचे पर गड्ढा, खाँचा इत्यादि होने के बावजूद बेपरवाह होकर कला प्रदर्शन करते थे। लेकिन आज के कलाकार मंच की छोटी-छोटी गलतियों को ढूंढते हैं। चर्चा का विषय बनाते हैं। उस समय न एयर कंडीशन होता, न ही बहुत अधिक अन्य सुविधाएँ। उसके बावजूद उत्साह था, लेकिन आज सुविधा की पूर्णता होते हुए भी मीन-मेख निकालने की परिपाटी विकसित हुई है।
प्रश्न 17. पांच सौ रुपए देकर गण्डा बंधवाने का क्या अर्थ है?
उत्तर-
बिरजू महाराज के पिता ही उनके गुरु थे। उनके पिता में गुरुत्व की भावना थी। बिरजू महाराज अपने गुरु के प्रति असीम आस्था और विश्वास व्यक्त करते हुए अपने ही शब्दों में कहते हैं कि यह तालीम मुझे बाबूजी से मिली है। गुरु दीक्षा भी उन्होंने ही मुझे दी है। गण्डा भी उन्होंने ही मुझे बांधा। गण्डा का अभिप्राय यहाँ शिष्य स्वीकार करने की एक लौकिक परंपरा का स्वरूप है। जब बिरजू महाराज के पिता उन्हें शिष्य स्वीकार कर लिये तो बिरजू महाराज ने गुरु दक्षिणा के रूप में अपनी कमाई का 500/- रुपये उन्हें दिये।
भाषा की बात
प्रश्न 1. काल रचना स्पष्ट करें
(क) ये शायद 43 की बात रही होगी।
उत्तर-
1943 ई की।
(ख) यह हाल अभी भी है।
उत्तर-
1943 ई की।
(ग) उस उम्र में न जाने क्या नाचा रहा होऊँगा।
उत्तर-
5 वर्ष की उम्र में (1943 ई. में)
(घ) अब पचास रुपये में रिक्शे पर खर्च करता तो क्या बचता, और ट्यूशन में नागा हो तो पैसा अलग काट लेते थे।
उत्तर-
1948 ई. में।
(ङ) पचास रुपए में काम करके किसी तरह पढ़ता रहा मैं।
उत्तर-
1948 ई०
प्रश्न 2. चौदह साल की उम्र में, जब मैं वापस लखनऊ आया फेल होकर, तब कपिला जी अचानक लखनऊ पहुंची मालूम करने कि लड़का जो है वह कुछ करता भी है या आवारा या गिरकट हो गया, वह है कहाँ।
उत्तर-
चौदह साल की उम्र में फेल होकर लखनऊ आया कपिला जी अचानकं लखनऊ आकर पता किया कि लड़का क्या कर रहा है।
(ख) वह तीन साल मैं खूब रियाज किया, मतलब यही सोचकर कि यही टाइम है अमर कुछ बढ़ना है तो अंधेरा करा किया करके करता था जब बाद में थक जाऊँ मैं तो जो भी साज हाथ आए कभी सितार, कभी गिटार, कभी हारमोनियम लेकर बजाऊं मतलब रिलैक्स होने के लिए।
उत्तर-
अंधेरा कमरा करके तीन साल मैं खूब रियाज किया और थक जाने पर सितार, गिटार, हारमोनियम रिलेक्स के लिए बजाता।
प्रश्न 3. पाठ से ऐसे दस वाक्यों का चयन कीजिए जिससे यह साबित होता हो कि ये वाक्य आमने-सामने बैठे व्यक्तियों के बीच की बातचीत के हैं, लिखित भाषा के नहीं।
उत्तर-
(क) जन्म मेरा लखनऊ के जफरीन अस्पताल में 1938, 4 फरवरी, शुक्रवार, सुबह 8 बजे।
(ख) आपको मंच का कुछ अनुभव या संस्मरण बचपन के हैं।
(ग) आपको आगे बढ़ाने में अम्मा जी का बहुत बड़ा हाथ है।
(घ) अपने शार्गिों के बारे में बताएँ।
(ङ) अब तुम हो इतने अर्से से।
(च) शाश्वती लगी हुई है।
(छ) लड़कों में कृष्णमोहन, राममोहन को उतना ध्यान नहीं है।
(ज) आपको संगीत नाटक अकादेमी अवार्ड कब मिला।
(अ) केशवभाई और मैं साथ ही रहते थे।
(अ) शागिर्द मैं बाबूजी का हूँ।
प्रश्न 4. निम्नलिखित वाक्यों से अव्यय का चुनाव करें।
(क) जब अंडा कहकर पूछे तो नहीं खाता था, पर जब मूंग की दाल कहें तो बड़े मजे से खा लेता था।
उत्तर-
जब, तो, पर, तो आदि।
(ख) एक सीताराम बागला करके लड़का था अमीर घर का।
उत्तर
एक, करके।
(ग) बिलकुल पैसा नहीं था घर में कि उनका दसवाँ किया जा सके।
उत्तर-
बिलकुल, जा आदि।
(घ) फिर जब एक साल हो गया तो कहने लगे कि अब तुम परमानेंट हो गए।
उत्तर-
फिर, जब, एक, तो, अब आदि।
गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर
गद्यांश-1
बिरजू महाराज : जन्म मेरा लखनऊ के जफरीन अस्पताल में 1938, 4 फरवरी, शुक्रवार, सुबह 8 बजे; वसंत पंचमी के एक दिन पहले हुआ। घर में आखिरी सन्तान। तीन बहनों के बाद। सबसे छोटी बहन मुझसे आठ नौ साल बड़ी। अम्मा तब 28 के लगभग रही होंगी। बहनों का जन्म रामपुर में क्योंकि बाबूजी यहाँ 22 साल रहे। बड़ी बहन लगभग 15 साल बड़ी। उस समय बाबूजी रायगढ़ आदि राजांओं के यहाँ भी गए। मैं डेढ़ दो साल का था। उस समय विभिन्न राजा कुछ समय के लिए कलाकारों को माँग लिया करते थे। पटियाला भी गए थे पहले। रायगढ़ दो ढाई साल रहे होंगे। रामपुर लौटकर आए। रामपुर काफी अरसे रहे। जब पाँच छह साल के थे तो अकसर नवाब याद कर लिया करते थे। हलकारे आ गए तो जाना ही पड़ता था। चाहे जो भी वक्त हो।
प्रश्न.
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) बिरजू महाराज का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
(ग) महाराज अपने माता-पिता की कौन-सी संतान थे ?
(घ) महाराज की बहनों का जन्म कहाँ हुआ था?
(ङ) बडी बहन महाराज से कितने बडी थी?
(च) बाबूजी रामपुर में कितने दिन रहे थे?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-जित-जित मैं निरखत हैं। लेखक का नाम- पंडित बिरजू महाराज।
(ख) बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी, 1938 में जफरीन अस्पताल, लखनऊ में हुआ था।
(ग) महाराज अपने माता-पिता की आखिरी संतान थे।
(घ) महाराज की बहनों का जन्म रामपुर में हुआ था।
(ङ) बड़ी बहन महाराज से लगभग 15 साल बड़ी थी।
(च) बाबूजी रामपुर में 22 साल रहे थे।
गद्यांश-2
छह साल की उम्र में मैं नवाब साहब को बहुत पसंद आ मया। मैं नाचता था जाकर। पीछे पैर मोड़कर बैठना पड़ता था। चूड़ीदार पैजामा साफा, अचकन पहन कर। अम्मा जी बेचारी बहुत परेशान। उन्होंने हमारे तनख्वाह भी बाँध दी थी। बाबूजी रोज हनुमानजी का प्रसाद माँगे कि 22 साल गुजर गए, अब नौकरी छूट जाए। नवाब साहब बहुत नाराज कि तुम्हारा लड़का नहीं होगा तो तुम भी नहीं रह सकते। खैर बाबू जी बहुत खुश हुए और उन्होंने मिठाई बांटी। हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया कि जान छूटी।
प्रश्न.
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) कितने साल की उम्र में महाराज नवाब को पसंद आ गये थे।
(ग) बचपन में नवाब के समक्ष क्या पहनकर महाराज नाचते थे।
(घ) बाबूजी हनुमान जी का प्रसाद क्यों मांगते थे?
(ङ) बाबूजी हनुमान जी को प्रसाद क्यों चड़ाये ?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम–जित-जित मैं निरखत हूँ। लेखक का नाम-बिरजू महाराज।
(ख) छह साल की उम्र में बिरजू नवाब को पसंद आ गये थे।
(ग) बचपन में महाराज चूड़ीदार पैजामा, साफा, अचकन पहनकर नवाब के समक्ष नाचते थे।
(घ) बाबूजीं चाहते थे कि नौकरी छूट जाए, इसलिए हनुमान जी का प्रसाद माँगते थे।
(ङ) नौकरी से जान छूटने की खुशी में हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया।
गद्यांश-3
मेरी एक बड़ी खास आदत रही है, जैसे कि मेरे बाबूजी की भी थी कि जब शार्गिद को सिखा रहे हैं तो पूर्ण रूप से मेहनत कर सिखाना और अच्छा बना देना है। ऐसा बना देना कि मैं खुद हूँ। यह कोशिश है। पर अब भगवान की कृपा भी होनी चाहिए तब। मतलब कोशिश यही रहती है कि मैं कोई चीज चुराता नहीं हूं कि अपने बेटे के लिए ये रखना है उसको सिखाना है।
प्रश्न.
(क) पाठ और वक्ता का नामोल्लेख करें।
(ख) बिरजू महाराज का यह कथन किस संदर्भ में है ?
(ग) बिरजू महाराज अपनी किस आदत के बारे में क्या बताते हैं?
उत्तर-
(क) पाठ-जित-जित मैं निरखत हूँ। वक्ता–बिरजू महाराज।
(ख) बिरजू महाराज का यह कथन शिष्यों की शिक्षा के संदर्भ में है।
(ग) बिरजू महाराज अपने शिष्यों को शिक्षा देने के संदर्भ में अपनी आदत का उल्लेख करते – हुए कहते हैं कि अपने पिता की तरह उनकी खास आदत रही है शिष्यों को मेहनत करके सिखाना और उन्हें अच्छा अपने जैसा बनाने की चेष्टा करना है। वे कहते हैं कि वे बेटों और शिष्यों में ‘ भेद नहीं करते। वे जो अपने बेटों-बेटियों को सिखाते हैं, वह सब कुछ अपने शिष्यों को भी सिखाते हैं।
गद्यांश-4
बिरजू महाराज:-अम्माजी का बहुत बड़ा हाथ है। अम्माजी ने तो शुरू से उन बुजुर्गों की तारीफ कर करके मेरे सामने हरदम कि, बेटा वो ऐसे थे, उनको कम-से-कम इतना नाम तो याद था उन बुजुर्गों का। अभी आप दूसरे किसी से पूछे घर में तो उन्हें नाम भी नहीं मालूम था कि कौन थे। चाची (शंभू महाराज की पत्नी) से आप पूछे महाराज बिन्दादीन के बाद पहले और कौन थे तो उनको नहीं मालूम। तुमरियाँ भी मैंने उनसे सीखीं। मेरी वाकई में गुरुवाइन थी; वो माँ तो थीं ही। गुरुवाइन भी। और जब भी मैं नाचता था तो सबसे बड़ा एक्जामिनर या जज अम्मा को समझता था। जब भी वो नाच देखती थीं तो मैं कहता था उनसे कि मैं कहीं गलत तो नहीं कर रहा हूँ। मतलब बाबूजी वाला ढंग है ना कहीं गड़बड़ी तो नहीं हो रही। तो कही नहीं बेटा नहीं। उन्हीं की तस्वीर हो। पर बैले वैले यह तो मेरा भैया क्रियेशन है। वो हरदम ऐसे ही कहती रहीं और लखनऊ के जो बुजुर्ग थे उनसे भी, गवाही ली मैंने। चेंज तो नहीं लग रहा है। नहीं बेटा वही ढंग है। और तुम्हारा शरीर वगैरह टोटल ढंग वैसा ही है। बैठने का, उठने का, बात करने का। मतलब जैसा था उनका।
प्रश्न.
(क) बिरजू को आगे बढ़ाने में किनका हाथ है?
(ख) बिरजू ने अपनी माँ को गुरुवाइन क्यों कहा है ?
(ग) नृत्य करते समय बिरजू अपना जज किसे मानते थे? और क्यों ?
(घ) बिरजू को गवाही लेने के लिए क्या करना पड़ता था ?
उत्तर-
(क) बिरजू को आगे बढ़ाने में उनकी मां का हाथ है।
(ख) बिरजू की माँ अक्सर पूर्वजों का गुणगान कर उनमें हौसला भरा करती थीं। किसी का नाम पूछने पर झट से बता देती थीं। नृत्य में, गलत होने पर समझा देती थीं। अपनी माँ को गुरुवाइन कहा है।
(ग) जज का काम न्याय करना होता है। न्याय के मंच पर बैठा हुआ व्यक्ति अपना-पराया नहीं देखता है। बिरजूजी की मां नृत्य करते समय अच्छे-बुरे की ताकीद किया करती थीं। अच्छा होने पर ही वह अच्छा कहती थीं।
(घ.) नृत्य अच्छा हुआ या नहीं इसके लिए बिरजू महाराज अपनी माँ को नियुक्त करते थे। गायन और नृत्य में कहीं अन्तर तो नहीं हुआ इसके लिए माँ से पूर्वजों का उदाहरण लिया करते थे। इतना ही नहीं लखनऊवासियों से भी हामी भरवाते थे।
गद्यांश-5
रामपुर नवाब के महल में भी नाचा हूँ नेपाल महाराज के यहाँ भी नाचा हूँ और जमींदारों के यहाँ भी नाचा हूँ जहाँ का मैं अक्सर तमाशा सुनाता रहता हूँ कि जहाँ महफिल भी लगी है कि लड़का नाचेगा जरा चारों तरफ थोड़ा खिसककर जगह बनाओ तो सब खिसक जायें तो नीचे गलीचा गलीचे पर चांदनी और चाँदनी गलीचे के नीचे जमीन पर कहीं पर गड्ढे हैं कहीं पर खाँचा है मतलब यह सब नहीं कौन परवाह करे। आजकल हमारे नये डांसर हैं कि स्टेज बड़ा खराब है बड़ा टेढ़ा है बड़ा गड्ढा है। हम लोगों को यह सब सोचने का कहाँ मौका मिलता था। अब गर्मी के दिनों में जरा सोचो न एयरकंडीशन; न कुछ वो बड़े-बड़े पंखे लेकर जो नौकर-चाकर थे, वो हाँकते रहते थे। उनसे भी हाथ बचाना पड़ता था। नाचने में उससे न लड़ जायें कहीं। दूसरे कि गैस लाइट जल रही है उसकी भी गर्मी।
प्रश्न.
(क) बिरजूजी का नृत्य कहाँ-कहाँ हुआ है ?
(ख) उस समय स्टेज की व्यवस्था कैसे होती थी?
(ग) पहले और आज के नर्तकों में क्या अन्तर है ?
(घ) सफल नर्तक की क्या पहचान है?
उत्तर-
(क) बिरजूजी का नृत्य रामपुर नवाब के महल में, नेपाल महाराज के भवन में, अनेक जमींदारों आदि के यहाँ हुआ है।
(ख) उस समय स्टेज की व्यवस्था अजीबोगरीब होती थी। न समुचित रोशनी की व्यवस्था होती और न ही समतल फर्श आदि की होती थी। नृत्य हो इसके लिए साधारण रूप से व्यवस्था कर दी जाती थी।
(ग) पहले के नर्तक अपनी कला को प्रदर्शन करना जानते थे। उन्हें वाद्य-संयंत्रों, बिजली आदि की व्यवस्था से उतना संबंध नहीं रहता था। जो था उसी पर वे अपनी कला प्रदर्शित कर देते थे। आज के नर्तक कला, प्रदर्शन नहीं बाह्य आडंबर प्रदर्शित करते हैं। आज के लिए उन्हें चकाचौंध स्टेज, परिपूर्ण वाद्य-यंत्र चाहिए।
(घ) सफल नर्तक रंगमंच से प्रभावित नहीं होता है। बल्कि अपनी कला का आत्मसात करना * चाहता है। कला प्रदर्शन की क्षमता ही सफल नर्तक की पहचान है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
सही विकल्प चुनें
प्रश्न 1. बिरजू महाराज की ख्याति किस रूप में है ?
(क) शहनाईवादक
(ख) नर्तक
(ग) तबलावादक
(घ) संगीतकार
उत्तर-
(ख) नर्तक
प्रश्न 2. बिरजू महाराज किस शैली के नर्तक हैं?
(क) कथक
(ख) मणिपुरी
(ग) कुचिपुडी
(घ) कारबा
उत्तर-
(क) कथक
प्रश्न 3. बिरजू महाराज का संबंध किस घराने से है ?
(क) लखनऊ
(ख) डुमराँव
(ग) बनारस
(घ) किसी भी नहीं।
उत्तर-
(क) लखनऊ
प्रश्न 4. “जित-जित मैं निरखत हूँ’-पाठ का संबंध किससे है ?
(क) शंभु महाराज
(ख) लच्छू महाराज
(ग) बिरजू महाराज
(घ) किशन महाराज
उत्तर-
(ग) बिरजू महाराज
प्रश्न 5. बिरजू महाराज को संगीत नाटक अकादमी अवार्ड किस उम्र में मिला?
(क) 37 वर्ष
(ख) 27 वर्ष
(ग) 47 वर्ष
(घ) 57 वर्ष
उत्तर-
(ख) 27 वर्ष
प्रश्न 6. ‘जित-जित मैं निरखत हूँ’ पाठ साहित्य की कौन-सी विधा है ?
(क) ललित निबंध
(ख) कहानी
(ग) कविता
(घ) साक्षात्कार
उत्तर-
(घ) साक्षात्कार
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 1. बिरजू महाराज कथन के लालित्य के …… हैं।
उत्तर- कवि
प्रश्न 2. रश्मि वाजपेयी ……… पत्रिका की संपादिका है।
उत्तर- ‘नटरंग’
प्रश्न 3. बिरजू महाराज का जन्म ……….. 1938 ई. को हुआ।
उत्तर- 4 फरवरी
प्रश्न 4. शागिर्द मैं …………. का हूँ।
उत्तर- बाबूजी
प्रश्न 5. …………. भी मैंने उनसे सीखी।
उत्तर- ठुमरियाँ
प्रश्न 6. वैसे-वैसे मेरा …………… है।
उत्तर- क्रियेशन
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. लच्छु महाराज कैसे आदमी थे ?
उत्तर- लच्छु महाराज शौकीन आदमी थे और अप-टू-डेट रहते थे।
प्रश्न 2. बिरजू महाराज के पिता की मृत्यु कब और कैसे हुई?
उत्तर- बिरजू महाराज के पिता की मृत्यु 54 वर्ष की उम्र में लू लगने से हुई।
प्रश्न 3. बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते थे?
उत्तर- बिरजू महाराज सितार, गिटार, बाँसुरी, हारमोनियम के अलावा तबला शौक के तौर पर बजाते थे।
प्रश्न 4. बिरजू महाराज का जन्म कहाँ और कब हआ था?
उत्तर- बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी 1938 ई में लखनऊ के जफरीन अस्पताल में हुआ था।
प्रश्न 5. बिरजू महाराज किस घराने के कलाकार थे?
उत्तर- बिरजू महाराज लखनऊ घराने के वंशज और उसकी सातवीं पीढ़ी के कलाकार थे।
प्रश्न 6. बिरजू महाराज नृत्य की किस शैली के महान नर्तक थे ?
उत्तर- बिरजू महाराज “कत्थक” नृत्य में पारंगत एक महान नर्तक थे।
प्रश्न 7. बिरजू महाराज को नृत्य का प्रशिक्षण सर्वप्रथम किससे प्राप्त हुआ?
उत्तर- बिरजू महाराज के प्रारम्भिक गुरु उनके पिताजी थे और उन्हें सर्वप्रथम प्रशिक्षण उनसे ही प्राप्त हुआ।
प्रश्न 8. बिरजू महाराज ने सर्वप्रथम नृत्य का प्रदर्शन कब प्रारम्भ किया ?
उत्तर- मात्र छः साल की उम्र में रामपुर के नवाब साहब की हवेली में उन्होंने नृत्य करना प्रारम्भ किया।
प्रश्न 9. निर्मला जी कौन थीं तथा बिरजू महाराज का उनसे किस प्रकार का संबंध था अथवा किस प्रकार जुड़े ?
उत्तर- निर्मला (जोशी) दिल्ली में हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक नामक संस्था चलाती थीं, जहाँ बिरजू महाराज ने लगभग तीन वर्षों तक कार्य किया।
प्रश्न 10. लखनऊ और रामपुर से बिरजू महाराज का क्या संबंध है ?
उत्तर- बिरजू महाराज का जन्म लखनऊ में हुआ था। रामपुर में महाराज जी का अत्यधिक समय व्यतीत हुआ था एवं वहाँ विकास का सुअवसर मिला था।
प्रश्न 11. नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े और वहाँ किनके संपर्क में आए?
उत्तर- नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज जी दिल्ली में हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक से जुड़े और वहां निर्मला जी जोशी के संपर्क में आए।
प्रश्न 12. किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला?
उत्तर- शम्भू महाराज चाचाजी एवं बाबूजी के साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला।
जित-जित मैं निरखत हूँ Summary in Hindi
पाठ का सारांश
जन्म मेरो लखनऊ के जफरीन अस्पताल में 1938, 4 फरवरी, शुक्रवार, सुबह 8 बजे : घर में आखिरी सन्तान। तीन बहनों के बाद। छह साल थी उम्र में मैं नवाब साहब को बहुत पसंद आ गया। मैं नवाब साहब के पास जाकर नाचता था।
वहाँ से फिर निर्मला जी के स्कूल में यहाँ दिल्ली में हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक में चले गए। यहाँ दो तीन साल काम करते रहे। ये शायद 43 की बात रही होगी।
जहाँ वे खुद नाचते तो पहले मुझे नचवाते थे और खूब जोरों से जमकर नाचता था। प्रायवेट प्रोग्राम जिनमें बाबू जी जाते थे जौनपुर, मैनपुरी, कानपुर, देहरादून, कलकत्ता, बंबई आदि, इनमें मुझे जरूर रखते थे। पहले इसीलिए कलकत्ते में बहुत मजा आया। उसमें फर्स्ट प्राइज मिलने वाला था। उसमें शम्भू महाराज चाचाजी और बाबू जी दोनों नाचे। पर उसमें फर्स्ट प्राइज मुझे मिला।
हाँ साढ़े नौ साल की उम्र में बाबू जी मृत्यु हो गई। मुझे तालीम बाबूजी से ही मिला। 500 रुपए देकर मैंने गण्डा बंधवाया। तो शागिर्द मैं बाबू जी का हूँ। उनके मरते ही हम लोगों के बहुत खराब दिन शुरू हो गए। कानपुर में दो ढाई साल रहा। आर्यानगर में 25-25 रुपए की दो ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। 50 रुपए में काम कर किसी तरह पढ़ता रहा मैं। पिताजी की मृत्यु के समय उनके श्राद्ध कर्म करने के लिए पैसे नहीं। दस दिन के अंदर मैंने दो प्रोग्राम किए। 500 रु. इकट्ठे हुए तो दसवाँ और तेरहवीं की गई।
चौदह साल का था तो संगीत भारती आया। मैंने यहाँ साढ़े चार साल काम किया। संगीत भारती की कमाई से मैंने एक साइकिल खरीदी थी जो मेरे पास आज भी है। और उस साइकिल को मैं नहीं बेचता।
खैर उसमें से रश्मि जी एक लड़की मिली थी। उन्हें पूरे मन से सिखाया। वो तालीम देखकर जो महाराज के यहाँ की लड़कियाँ अट्रेक्ट हुई। क्योंकि तालीम जरा अच्छी थी मेरी। संगीत भारती के जमाने में कलकत्ते में एक कांफ्रेंस में नाचा हूँ। कलकत्ते की ऑडियन्स ने मेरी बड़ी प्रशंसा की। इतनी की कि तमाम अखबारों में मैं छप गया एकदम। उसके बाद हरिदास स्वामी कांफ्रेंस बंबई ब्रजनारायण ने बुलाया। मेरा प्रोग्राम बहुत अच्छा हुआ। उसके बाद से बम्बई, कलकत्ते, मद्रास आदि जगहों पर मेरा प्रोग्राम होने लगा। विदेश दूर में सबसे पहले रूस गये। उसके बाद जर्मनी, जापान, हांगकांग, लाओस, बर्मा आदि।
अम्मा को मैं सबसे बड़ा जज मानता हूँ। जब वो नाच देखती तो मैं पूछता था कि मैं कहीं गलत तो नहीं कर रहा हूँ। मतलब बाबूजी वाला ढंग है ना कहीं गड़बड़ी तो नहीं हो रही। तो कहती नहीं बेटा नहीं। उन्हीं की तस्वीर हो।
शब्दार्थ
क्रोड़स्थ : गोद या अंक में स्थित
हलकार : संदेशवाहक, कारिंदा
साफा : साफ लंबा वस्त्र जिसे नर्तक कंधे से लेकर कमर तक लपेट लेता है
अचकन : पोशाक विशेष
मेजरमेंट : नाप, माप नाप, माप
मस्का : मक्खन (मस्का लगाना या मक्खन लगाना मुहावरा भी है)
परन : तबले के वे बोल जिन पर नर्तक नाचता और ताल देता है ‘
बंदिश : ठुमरी या अन्य प्रकार के गायन के बोल, स्थायी
दाल का चिल्ला : उबले हुए दाल को मसलकर बनाया गया व्यंजन
गण्डा बांधना : दीक्षित करना, शिष्य स्वीकार करना
नजराना : भेंट, उपहार, गुरुदक्षिणा
नागा : अनुपस्थित, हाजिर नहीं होना, गायब रहना
गिरहकट : पैंतरेबाज, गाँठ काट लेनेवाला, पाकेटमार विशेष
परमानेंट : स्थायी
चरण : छंद की एक इकाई
टुकड़े : किसी पद की पंक्ति
तिहाइयाँ : तीसरे हिस्से
बैले : यूरोपीय नृत्य विशेष जिसमें कथानक, भावाभिनय और नृत्य तीनों शामिल
होते हैं
अरसा : समय, अवधि
गलीचा : फर्श या बिस्तर जो नरम हो
मिजराब : सितार बजाने का एक तरह का छल्ला
लहरा : छंदमय आरोही गति जो भावप्रसंग के साथ हो ।
शागिर्द : शिष्य
लाजवाब : जिसका जवाब न हो, अद्वितीय, अनुपम
गद्य खण्ड पाठ 9: आविन्यों (ललित रचना) प्रश्न-उत्तर
बिहार बोर्ड class 10 हिंदी का प्रश्न उत्तर
Godhuli Hindi Book Class 10 Solutions Bihar Board
गोधूलि भाग 2 प्रश्न उत्तर Class 10 Hindi गद्य खण्ड
- Chapter 1 श्रम विभाजन और जाति प्रथा (निबंध)
- Chapter 2 विष के दाँत (कहानी)
- Chapter 3 भारत से हम क्या सीखें (भाषण)
- Chapter 4 नाखून क्यों बढ़ते हैं (ललित निबंध)
- Chapter 5 नागरी लिपि (निबंध)
- Chapter 6 बहादुर (कहानी)
- Chapter 7 परंपरा का मूल्यांकन (निबंध)
- Chapter 8 जित-जित मैं निरखत हूँ (साक्षात्कार)
- Chapter 9 आविन्यों (ललित रचना)
- Chapter 10 मछली (कहानी)
- Chapter 11 नौबतखाने में इबादत (व्यक्तिचित्र)
- Chapter 12 शिक्षा और संस्कृति (शिक्षाशास्त्र)
बिहार बोर्ड की दूसरी कक्षाओं के लिए Notes और प्रश्न उत्तर
10th क्लास के अलावा बिहार बोर्ड की दूसरी कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्र अपने क्लास के अनुसार नीचे दिए गए लिंक से वर्गवार और विषयावर pdf नोट्स डाउनलोड कर सकते हैं।
- Bihar Board pdf Notes for Class 5th
- Bihar Board pdf Notes for Class 6th
- Bihar Board pdf Notes for Class 7th
- Bihar Board pdf Notes for Class 8th
- Bihar Board pdf Notes for Class 9th
- Bihar Board pdf Notes for Class 10th
- Bihar Board pdf Notes for Class 11th
- Bihar Board pdf Notes for Class 12th
Important Links
Trending Now
- Matric inter Dummy Registration Card 2025 जारी: यहाँ से करें डाउनलोड
- Matric pass scholarship 2024: 10th पास प्रोत्साहन राशि ऑनलाइन शुरू, यहाँ से करें अप्लाइ
- Bihar Board 11th Class Registration 2024 For inter Exam 2026: Registration Form Download, लास्ट डेट, शुल्क, आवश्यक डॉक्युमेंट्स
- Bihar Board inter Original Registration Card 2025 Download