12th Hindi Book Digant Part 2: Chapter 6

Bihar Board 12th “Hindi” Objective Subjective Question Answers

Chapter 6 Ek Lekh Aur Ek Patra

Objective Type Questions and Answer

एक लेख और एक पत्र अति लघु उत्तरीय प्रश्न

Bihar Board Class 12th Hindi एक लेख और एक पत्र प्रश्न 1.
‘एक लेख और एक पत्र के लेखक हैं’ :
उत्तर–
भगत सिंह।

Bihar Board Class 12th Hindi Ek Lekh Aur Ek Patra प्रश्न 2.
भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुन्दर कहा है?
उत्तर–
देश सेवा के बदले दी गई फाँसी को।

BSEB Class 12th Hindi Ek Lekh Aur Ek Patra प्रश्न 3.
भगत सिंह के अनुसार आत्महत्या क्या है?
उत्तर–
कायरता।

प्रश्न 4.
भगत सिंह सरकार के किस राय पर खपा थे?
उत्तर–
छात्र को राजनीति से दूर रखने की राय पर।

एक लेख और एक पत्र का सारांश Class 12th Hindi प्रश्न 5.
विद्यार्थी को राजनीति में क्यों भाग लेना चाहिए?
उत्तर–
विद्यार्थी देश के भावी कर्णधार होते हैं।

प्रश्न 6.
भगत सिंह के आदर्श पुरुष कौन थे?

उत्तर

करतार सिंह सराबा।

प्रश्न 7.
सन् 1926 में भगत सिंह ने किस दल का गठन किया?
उत्तर–
नौजवान भारत सभा।

एक लेख और एक पत्र वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

Ek Lekh Aur Ek Patra Summary In Hindi BSEB Class 12th प्रश्न 1.
भगत सिंह का जन्म कब हुआ था?
(क) 28 सितम्बर, 1907 ई.
(ख) 10 सितम्बर, 1910 ई.
(ग) 15 जून, 1901 ई.
(घ) 17 फरवरी, 1908 ई.
उत्तर–
(क)

प्रश्न 2.
1941 ई. में भगत सिंह किस पार्टी की ओर आकर्षित हुए?
(क) गदर पार्टी
(ख) नेशनल पार्टी
(ग) स्वतंत्र पार्टी
(घ) राष्ट्रवादी पार्टी
उत्तर–
(क)

प्रश्न 3.
भगत सिंह सदैव किसका चित्र पॉकेट में रखते थे?
(क) गुरु गोविन्द सिंह
(ख) गुरुनानक
(ग) महात्मा बुद्ध
(घ) करतार सिंह सराया
उत्तर–
(घ)

Bihar Board Class 12th Hindi Ek Lekh Aur Ek Patra Question Answer प्रश्न 4.
भगत सिंह किस उम्र से क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय हुए?
(क) 12 वर्ष
(ख) 18 वर्ष
(ग) 10 वर्ष
(घ) 15 वर्ष
उत्तर–
(क)

प्रश्न 5.
भगत सिंह कब चौरीचौरा कांड में शरीक हुए?

(क) 1922 ई.
(ख) 1925 ई.
(ग) 1928 ई.
(घ) 1930 ई. .
उत्तर–
(क)

Class 12th Hindi Ek Lekh Aur Ek Patra Question Answer प्रश्न 6.
भगत सिंह ने नौजवान–सभा की शाखाएँ कहाँ–कहाँ स्थापित की?
(क) पटना–दिल्ली
(ख) कानुपुर–कलकत्ता
(ग) अजमेर–गाजीपुर
(घ) विभिन्न शहरों में
उत्तर–
(घ)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
भगत सिंह को ………. षड्यंत्र केस में फांसी की सजा हुई थी।

उत्तर–
लाहौर

प्रश्न 2.
भगत सिंह के पिता सरदार ………… थे।

उत्तर–
किशन सिंह

प्रश्न 3.
भगत सिंह ………. परिवार स्वाधीनता सेनानी थे।

उत्तर–
संपूर्ण

प्रश्न 4.
भगत सिंह का ……… खडकड़कलाँ, पंजाब में है।

उत्तर–
पैतृक गाँव

प्रश्न 5.
बाद में भगत सिंह ने ………….. कॉलेज, लाहौर से एफ. ए. किया।

उत्तर–
नेशनल

प्रश्न 6.
भगत सिंह का जन्म ………. हुआ था।

उत्तर–
28 सितम्बर, 1907 ई.

प्रश्न 7.
भगत सिंह ने बी. ए. के बाद पढ़ाई छोड़ दी और ……… दल में शामिल हो गए।

उत्तर–
क्रांतिकारी

एक लेख और एक पत्र पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
विद्यार्थियों को राजनीति में भाग क्यों लेना चाहिए?

उत्तर–
विद्यार्थियों को राजनीति में भाग इसलिए लेना चाहिए क्योंकि उन्हें ही कल देश की बागडोर अपने हाथ में लेनी है। अगर वे आज से ही राजनीति में भाग नहीं लेंगे तो आने वाले समय में देश की भली–भाँति नहीं सँभाल पाएँगे, जिससे देश का विकास न हो सकेगा।

प्रश्न 2.
भगत सिंह की विद्यार्थियों से क्या अपेक्षाएँ हैं?

उत्तर–
भगत सिंह की विद्यार्थियों से बहुत–सी अपेक्षाएँ हैं। वे चाहते हैं कि विद्यार्थी राजनीति तथा देश की परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त करें और उनके सुधार के उपाय सोचने की योग्यता पैदा करें। वे देश की सेवा में तन–मन–धन से जुट जाएँ और अपने प्राण न्योछावर करने से भी पीछे न हटें।

प्रश्न 3.
भगत सिंह के अनुसार केवल कष्ट सहकर ही देश की सेवा की जा सकती है? उनके जीवन के आधार पर इसे प्रमाणित करें।

उत्तर–
भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी के रूप में हमारे सामने आते हैं जिनमें देश की आजादी के साथ समाज की उन्नति की प्रबल इच्छा भी दिखती है। इसकी शुरुआत 12 वर्ष की उम्र में जालियाँवाला बाग की मिट्टी लेकर संकल्प के साथ होती है, उसके बाद 1923 ई. में गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र ‘प्रताप’ से। भगत सिंह यह जानते थे कि समाज में क्रांति लाने के लिए जनता में सबसे पहले राष्ट्रीयता का प्रसार करना होगा। उन्हें एक ऐसे विचारधारा से अवगत कराना होगा जिसकी बुनियाद समभाव समाजवाद पर टिकी हो। जहाँ शोषण की कोई बात न हो। इसलिए उन्होंने लिखा कि समाज में क्रांति विचारों की धार से होगी। वे समाज में गैर–बराबरी, भेदभाव, अशिक्षा, अंधविश्वास, गरीबी, अन्याय आदि दुर्गुण एवं अभाव के विरोधी के रूप में खड़े होते हैं, मानवीय व्यवस्था के लिए कष्ट, संघर्ष सहते हैं। भगत सिंह समझते हैं कि बिना कष्ट सहकर देश की सेवा नहीं की जा सकती है। इसीलिए उन्होंने जो नौजवान सभा बनायी थी उसका ध्येय सेवा द्वारा कष्टों को सहन करना एवं बलिदान करना था।।

क्रांतिकारी भगत सिंह कहते हैं कि मानव किसी भी कार्य को उचित मानकर ही करता है। जैसे हमने लेजिस्लेटिव असेम्बली में बम फेंकने का कार्य किया था। इस पर दिल्ली के सेसन जज ने असेम्बली बम केस में भगत सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कष्ट के संदर्भ में रूसी साहित्य का हवाला देते हुए कहते हैं, विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती है। हमारे साहित्य में दुःख की स्थिति न के बराबर आती है परन्तु रूसी साहित्य के कष्टों और दु:खमयी स्थितियों के कारण ही हम उन्हें पसंद करते हैं।

खेद की बात यह है कि कष्ट सहन की उस भावना को अपने भीतर अनुभव नहीं करते। हमारे जैसे व्यक्तियों को जो प्रत्येक दृष्टि से क्रांतिकारी होने का गर्व करते हैं सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों ‘चिन्ताओं’ दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए जिनको हम स्वयं आरंभ किए संघर्ष के द्वारा आमंत्रित करते हैं और जिनके कारण हम अपने आप को क्रांतिकारी कहते हैं। इसी आत्मविश्वास के बल पर भगत सिंह फाँसी के फंदे पर झूल गये। वे जानते थे मेरे इन कष्टों, दु:खों का जनता पर बेहद प्रभाव पड़ेगा और जनता आन्दोलन कर बैठेगी। अतः भगत सिंह का कहना सत्य है कि कष्ट सहकर ही देश की सेवा की जा सकती है।

प्रश्न 4.
भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुन्दर कहा है? वे आत्महत्या को कायरता कहते हैं, इस संबंध में उनके विचारों को स्पष्ट करें।

उत्तर–
क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह देश सेवा के बदले दी गई फाँसी (मृत्युदण्ड) को सुन्दर मृत्यु कहा है। भगत सिंह इस सन्दर्भ में कहते हैं कि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देनी चाहिए। इसी दृढ़ इच्छा के साथ हमारी मुक्ति का प्रस्ताव सम्मिलित रूप में और विश्वव्यापी हो और उसके साथ ही जब यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे तो हमें फाँसी दे दी जाय। यह मृत्यु भगत सिंह के लिए सुन्दर होगी जिसमें हमारे देश का कल्याण होगा। शोषक यहाँ से चले जायेंगे और हम अपना कार्य स्वयं करेंगे। इसी के साथ व्यापक समाजवाद की कल्पना भी करते हैं जिसमें हमारी मृत्यु बेकार न जाय। अर्थात् संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है।

भगत सिंह आत्महत्या को कायरता कहते हैं। क्योंकि कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करेगा वह थोड़ा दुख, कष्ट सहने के चलते करेगा। वह अपना समस्त मूल्य एक ही क्षण में खो देगा। इस संदर्भ में उनका विचार है कि मेरे जैसे विश्वास और विचारों वाला व्यक्ति व्यर्थ में मरना कदापि सहन नहीं कर सकता। हम तो अपने जीवन का अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त करना चाहते हैं। हम मानवता की अधिक–से–अधिक सेवा करना चाहते हैं। संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। प्रयत्नशील होना एवं श्रेष्ठ और उत्कृष्ट आदर्श के लिए जीवन दे देना कदापि आत्महत्या नहीं कही जा सकती। भगत सिंह आत्महत्या को कायरता इसलिए कहते हैं कि केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं। इस संदर्भ में वे एक विचार भी देते हैं कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती है।

प्रश्न 5.
भगत सिंह रूसी साहित्य को इतना महत्वपूर्ण क्यों मानते हैं? वे एक क्रान्तिकारी से क्या अपेक्षाएँ रखते हैं?

उत्तर–
सरदार भगत सिंह रूसी साहित्य को महत्वपूर्ण इसलिए मानते हैं कि रूसी साहित्य के प्रत्येक स्थान पर जो वास्तविकता मिलती है वह हमारे साहित्य में कदापि दिखाई नहीं देती है। उनकी कहानियों में कष्टों और दुखमयी स्थितियाँ हैं जिनके कारण दूख कष्ट सहने का प्रेरणा मिलती है। इस दुख, कष्ट से सहृदयता, दर्द की गहरी टीस और उनके चरित्र और साहित्य की ऊँचाई से हम बरबस प्रभावित होते हैं। ये कहानियाँ हमें जीव संघर्ष की प्रेरणा देती हैं। नये समाज निर्माण की प्रक्रिया में मदद करती हैं। इसलिए ये कहानियाँ महत्वपूर्ण हैं।

सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों से अपेक्षा करते हैं कि हम उनकी कहानियाँ पढ़कर कष्ट सहन की उस भावना को अनुभव करें। उनके कारणों पर सोचे–विचारें। हम जैसे क्रान्तिकारियों का सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों, चिन्ताओं, दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। भगत सिंह कहते हैं कि मेरा नजरिया यह रहा है कि सभी राजनीतिक कार्यकर्ता को ऐसी स्थितियाँ में उपेक्षा दिखानी चाहिए और उनको जो कठोरतम सजा दी जाय उसे हँसते–हँसते बर्दाश्त करना चाहिए। भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि किसी आंदोलन के बारे में यह कह देना कि दूसरा कोई इस काम को कर लेगा या इस कार्य को करने के लिए बहुत लोग हैं यह किसी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार जो लोग क्रांतिकारी क्षेत्र के कार्यों का भार दूसरे लोगों पर छोड़ने को अप्रतिष्ठापूर्ण एवं घृणित समझते हैं उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष आरंभ कर देना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे उन विधि यों का उल्लंघन करें, परन्तु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 6.
‘उन्हें चाहिए कि वे उन विधियों का उल्लंघन करें परन्तु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अनावश्यक एवं अनुचित प्रयत्न कभी भी न्यायपूर्ण नहीं माना जा सकता।’ भगत सिंह के इस कथन का आशय बताएँ। इससे उनके चिन्तन का कौन–सा पक्ष उभरता है? वर्णन करें।

उत्तर–
सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि क्रांतिकारी शासक यदि शोषक हो, कानून व्यवस्था यदि गरीब–विरोधी, मानवता विरोधी हो तो उन्हें चाहिए कि वे उसका पुरजोर विरोध करें, परन्तु इस बात का भी ख्याल करें कि आम जनता पर इसका कोई असर न हो, वह संघर्ष आवश्यक हो अनुचित नहीं। संघर्ष आवश्यकता के लिए हो तो उसे न्यायपूर्ण माना जाता है परन्तु सिर्फ बदले की भावना हो तो अन्यायपूर्ण। इस संदर्भ में रूस की जारशाही का हवाला देते हुए कहते हैं कि रूस में बंदियों को बंदीगृहों में विपत्तियाँ सहन करना ही जारशाही का तख्ता उलटने के पश्चात् उनके द्वारा जेलों के प्रबंध में क्रान्ति लाए जाने का सबसे बड़ा कारण था। विरोध करो परन्तु तरीका उचित होना चाहिए, न्यायपूर्ण होना चाहिए। इस दृष्टि से देखा जाय तो भगत सिंह का चिन्तन मानवतावादी है जिसमें समस्त मानव जाति का कल्याण निहित है। यदि मानवता पर तनिक भी प्रहार हो, उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष आरंभ कर देना चाहिए।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित कथनों का अभिप्राय स्पष्ट करें

(क) मैं आपको बताना चाहता हूँ कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती हैं।
(ख) हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपम है।
(ग) मनुष्य को अपने विश्वासों पर दृढ़तापूर्वक अडिग रहने का प्रयत्न करना चाहिए।
उत्तर–
(क) भगत सिंह का मानना है कि विपत्तियाँ मनुष्य को पूर्ण बनाती हैं। अर्थात् मनुष्य सुख की स्थिति में तो बड़े ही आराम से रहता है। लेकिन जब उस पर कोई दुख आता है तो वह उसे दूर करने के प्रयास करता है जिससे उसका ज्ञान तथा कार्यक्षमता बढ़ती है और वह पूर्णतः पाता है।

(ख) भगत सिंह के अनुसार यदि मनुष्य यह सोचने लगे कि अगर मैं कोई कार्य नहीं करूंगा तो वह कार्य नहीं होगा तो यह पूर्णतः गलत है। वास्तव में मनुष्य विचार को जन्म देनेवाला नहीं होता, अपितु परिस्थितियाँ विशेष विचारों वाले व्यक्तियों को पैदा करती हैं। अर्थात् हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपज है।

(ग) भगत सिंह कहते हैं कि हमें एक बार किसी लक्ष्य या उद्देश्य का निर्धारण करने के बाद उस पर अडिग रहना चाहिए। हमें विश्वास रखना चाहिए कि हम अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर लेंगे।

प्रश्न 8.
‘जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए।’ आज जब देश आजाद है भगत सिंह के इस विचार का आप किस तरह मूल्यांकन करेंगे। अपना पक्ष प्रस्तुत करें।

उत्तर–
भगत सिंह का यह विचार है कि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतः भुला देना चाहिए, बहुत ही उत्तम तथा श्रेष्ठ है। आज जब देश आजाद है तब भी भगत सिंह को यह विचार पूर्णतः प्रासंगिक है, क्योंकि किसी भी काल या परिस्थिति में देश या समाज मनुष्य से ऊपर ही रहता है। यदि देश का विकास होगा तो ही वहाँ रहनेवाले लोगों का विकास होगा। वहीं यदि देश पर किसी प्रकार की विपदा आती है तो वहाँ के निवासियों को भी कष्टों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए हमें सदैव अपने से पहले देश की श्रेष्ठता, विकास तथा मान–सम्मान के विषय में सोचना चाहिए। साथ ही इसके लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 9.
भगत सिंह ने अपनी फाँसी के लिए किस समय की इच्छा व्यक्त की है? वे ऐसा समय क्यों चुनते हैं?

उत्तर–
भगत सिंह ने अपनी फाँसी के लिए इच्छा व्यक्त करते हुए कहा है कि जब यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे तो हमें फाँसी दे दी जाए। वे ऐसा समय इसलिए चुनते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि यदि कोई सम्मानपूर्ण या उचित समझौता होना हो तो उन जैसे व्यक्तियों का मामला उसमें कोई रूकावट उत्पन्न करे।

प्रश्न 10.
भगत सिंह के इस पत्र से उनकी गहन वैचारिकता, यथार्थवादी दृष्टि का परिचय मिलता है। पत्र के आधार पर इसकी पुष्टि करें।

उत्तर–
महान क्रांतिकारी भगत सिंह ने इस पत्र में तीन–चार सवालों पर विचार किया है जिनमें आत्महत्या, जेल जाना, कष्ट सहना, मृत्युदण्ड और रूसी साहित्य है।

भगत सिंह का आत्महत्या के संबंध में विचार है कि केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर लेना मनुष्य की कायरता है। यह कायर व्यक्ति का काम है। एक क्षण में समस्त पुराने अर्जित मूल्य खो देना मूर्खता है अत: व्यक्ति को संघर्ष करना चाहिए। दूसरा जेल जाना भगत सिंह व्यर्थ नहीं मानते क्योंकि रूस की जारशाही का तख्ता पलट बंदियों का बंदीगृह में कष्ट सहने का कारण बना। अतः यदि आन्दोलन को तीव्र करना है तो कष्ट सहन से नहीं डरना चाहिए।

देश सेवा के क्रम में क्रांतिकारी को ढेरों कष्ट सहने पड़ते हैं–जेल जाना, उपवास करना इत्यादि अनेकों दण्ड। अतः भगत सिंह कहते हैं कि हमें कष्ट सहने से नहीं डरना चाहिए क्योंकि विपत्तियाँ ही व्यक्ति को पूर्ण बनाती हैं।

मृत्युदण्ड के बारे में भगत सिंह के विचार हैं कि वैसी मृत्यु सुन्दर होगी जो देश सेवा के संघर्ष के लिए हो। संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। श्रेष्ठ एवं उत्कृष्ट आदर्श के लिए दी गई फाँसी एक आदर्श, सुन्दर मृत्यु है। अतः क्रांतिकारी को हँसते–हँसते फाँसी का फंदा डाल लेना चाहिए। रूसी साहित्य में वर्णित कष्ट दुख, सहनशक्ति पर फिदा है भगत सिंह। रूसी साहित्य में कष्ट सहन की जो भावना है उसे हम अनुभव नहीं करते। हम उनके उन्माद और चरित्र की असाधारण ऊँचाइयों के प्रशंसक है परन्तु इसके कारणों पर सोच विचार करने की चिन्ता कभी नहीं करते। अतः भगत सिंह का विचार है कि केवल विपत्तियाँ सहन करने के लिए साहित्य के उल्लेख ने ही सहृदयता, गहरी टीस और उनके चरित्र और साहित्य में ऊँचाई उत्पन्न की है।

इस प्रकार हम पाते हैं कि भगत सिंह की वैचारिकता सीधे यथार्थ के धरातल पर टिकी हुई आजीवन संघर्ष का संदेश देती है।

एक लेख और एक पत्र भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के प्रत्यय निर्दिष्ट करें कायरता, घृणित, पूर्णतया, दयनीय, स्पृहणीय, वास्तविकता, पारितोषिक।

उत्तर–
कायरता–ता, घृणित–इत, पूर्णतया–तया, दयनीय–इय, स्पृहणीय–इय, वास्तविकता–ता, पारितोषिक–इक।

प्रश्न 2.
‘हास्यास्पद’ शब्द में ‘आस्पद’ प्रत्यय हैं इस प्रत्यय से पाँच अन्य शब्द बनाएँ।

उत्तर–
‘आस्पद’ प्रत्यय से बने पाँच शब्द–विवादास्पद, घृणास्पद, संदेहास्पद, करुणास्पद, प्रेरणास्पद।

प्रश्न 3.
हमारे विद्यालय के प्राचार्य आ रहे हैं। इस वाक्य में ‘हमारे विद्यालय के प्राचार्य’ संज्ञा पदबंध है। वह पद समूह जो वाक्य में संज्ञा का काम करे, संज्ञा पदबन्ध कहलाता है। इस तरह नीचे दिए गए वाक्यों से संज्ञा पदबंध चुनें।

(क) बंदी होने के समय हमारी संस्था के राजनीतिक बंदियों की दशा अत्यन्त दयनीय थी।
(ख) कुछ मुट्ठी भर कार्यकर्ताओं के आधार पर संगठित हमारी पार्टी अपने लक्ष्यों और आदर्शों की तुलना में क्या कर सकती थी?
(ग) मैं तो यह भी कहूँगा कि साम्यवाद का जन्मदाता मार्क्स, वास्तव में इस विचार को जन्म देनवाला नहीं था।
उत्तर–
(क) राजनीतिक बंदियों

(ख) कुछ मुट्ठी भर कार्यकर्ता
(ग) साम्यवाद का जन्मदाता मार्क्स।

प्रश्न 4.
पर्यायवाची शब्द लिखें वफादारी, विद्यार्थी, फायदेमंद, खुशामद, दुनियादारी, अत्याचार, प्रतीक्षा, किंचित्।

उत्तर–
वफादारी–विश्वसनीयता, विद्यार्थी–छात्र, फायदेमंद–लाभदायक, खुशामद–मिन्नत दुनियादारी–सांसारिकता, अत्याचार–अन्याय, प्रतीक्षा–इन्तजार, किंचित्–कुछ।

प्रश्न 5.
विपरीतार्थक शब्द लिखें

सयाना, उत्तर, निर्बलता, व्यवहार, स्वाध्याय, वास्तविक, अकारण
उत्तर–

  • सयाना – मूर्ख
  • उत्तर – प्रश्न
  • निर्बलता – सबलता
  • व्यवहार – सिद्धान्त
  • स्वाध्याय – अध्यापन
  • वास्तविक – अवास्तविक
  • अकारण – कारण
एक लेख और एक पत्र भगत सिंह लेखक परिचय

जीवन–परिचय–
भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले अमर शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, सन् 1907 के दिन वर्तमान लायलपुर (पाकिस्तान) में हुआ। इनका पैतृक गाँव खटकड़कलाँ, पंजाब था। इनकी माता का नाम विद्यावती एवं पिता का नाम सरदार किशन सिंह था। इनका सम्पूर्ण परिवार स्वाधीनता संग्राम में शामिल था। इनके पिता और चाचा अजीत सिंह लाला लाजपत राय के सहयोगी थे। अजीत सिंह को देश से निकाला दिया गया था इसलिए वे विदेश जाकर मुक्तिसंग्राम का संचालन करने लगे। भगत सिंह के छोटे चाचा सरदार स्वर्ण सिंह भी जेल गए और जेल की यातनाओं के कारण सन 1910 में उनका निधन हो गया। भगत सिंह के फाँसी चढ़ने के बाद उनके भाई कुलबीर सिंह और कुलतार सिंह को जेल में रखा गया, जहाँ वे सन् 1946 तक रहे। इनके पिता भी अनेक बार जेल गए।

भगत सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव बंगा में हुई। इसके बाद लाहौर के डी.ए.वी. स्कूल से आगे की पढ़ाई की। बाद में नेशनल कॉलेज, लाहौर से एम.ए. किया। बी.ए. के दौरान इन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और क्रान्तिकारी दल में शामिल हो गए। भगत सिंह का बचपन से ही क्रांतिकारी करतार सिंह सराबा और गदर पार्टी से विशेष लगाव था। करतार सिंह सराबा की कुर्बानी को उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा जबकि उस समय उनकी आयु महज आठ वर्ष थी। जब वे बारह वर्ष के थे तो जलियाँवाला बाग का हत्याकांड हुआ। इस हत्याकांड का उनके हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे वहाँ की मिट्टी लेकर क्रान्तिकारी गतिविधियों में कूद पड़े। सन् 1922 में चौराचौरी कांड के बाद इनका कांग्रेस और महात्मा गाँधी से मोहभंग हो गया।

सन् 1923 में ये घर छोड़कर कानपुर चले गए और गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र ‘प्रताप’ से जुड़ गए। सन् 1926 में अपने नेतृत्व में पंजाब में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन किया, जिसकी शाखाएँ विभिन्न शहरों में थी। सन् 1928 से 1931 तक चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर ‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ’ का गठन किया और क्रांतिकारी आन्दोलन को बड़े स्तर पर प्रारम्भ किया। इन्होंने 8 अप्रैल, सन् 1929 के दिन बटुकेश्वर दत्त और राजगुरू को साथ लेकर केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंका तथा गिरफ्तार हो गए। स्वाधीनता सेनानियों के घर में जन्म लेने के कारण बचपन से ही इनके मन में देश की स्वतंत्रता के लिए मर मिटने का जज्बा था।

इनके भीतर संकल्प, त्याग, कर्म आदि की अमोघ शक्ति थी। महज तेईस वर्षों में ही वे राष्ट्रीयता, देशभक्ति, क्रान्ति और युवाशक्ति के प्रतीक बन गए। भारत माँ के इस महान सपूत को अनेक कष्टों के बाद 23 मार्च सन् 1931 के दिन शाम 7 बजकर 33 मिनट पर ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ में फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

भगत सिंह कोई साहित्यकार न थे लेकिन इन्होंने काफी लिखा है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं–

पंजाब की भाषा तथा लिपि की समस्या (हिन्दी में 1924), विश्वप्रेम (मतवाला में 1924 में प्रकाशित लेख), युवक (मतवाला में 1924 में प्रकाशित हिन्दी लेख), मैं नास्तिक क्यों हूँ (1939–31), अछूत समस्या, विद्यार्थी और राजनीति, सत्याग्रह और हड़तालें, बम का दर्शन, भारतीय क्रान्ति का आदर्श आदि लेख।

टिप्पणियाँ एवं पत्र जो विभिन्न प्रकाशकों द्वारा भगत सिंह के दस्तावेज के रूप में प्रकाशित हैं। शचीन्द्रनाथ सान्याल की पुस्तक ‘बंदी जीवन’ और ‘डॉन ब्रीन की आत्मकथा’ का अनुवाद इत्यादि भी सम्मिलित है।

एक लेख और एक पत्र पाठ के सारांश

भगत सिंह महान क्रान्तिकारी और स्वतंत्रता सेनानी और विचारक थे। भगत सिंह विद्यार्थी और राजनीति के माध्यम से बताते हैं कि विद्यार्थी को पढ़ने के साथ ही राजनीति में भी दिलचस्पी लेनी चाहिए। यदि कोई इसे मना कर रहा है तो समझना चाहिए कि यह राजनीति के पीछे घोर षड्यंत्र है। क्योंकि विद्यार्थी युवा होते हैं। उन्हीं के हाथ में देश की बागडोर है। भगत सिंह व्यावहारिक राजनीति का उदाहरण देते हुए नौजवानों को यह समझाते हैं कि महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचन्द्र बोस का स्वगात करना और भाषण सुनना यह व्यावहारिक राजनीति नहीं तो और क्या है। इसी बहाने वे हिन्दुस्तानी राजनीति पर तीक्ष्ण नजर भी डालते हैं। भगत सिंह मानते हैं कि हिन्दुस्तान को इस समय ऐसे देश सेवकों की जरूरत है जो तन–मन–धन देश पर अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आजादी या उसके विकास में न्योछावर कर दे। क्योंकि विद्यार्थी देश–दुनिया के हर समस्याओं से परिचित होते हैं। उनके पास अपना विवेक होता है। वे इन समस्याओं के समाधान में योगदान दे सकते हैं। अतः विद्यार्थी को पॉलिटिक्स में भाग लेनी चाहिए।

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