Bihar Board class 11th Hindi Digant Bhag 2 Solutions गद्य खण्ड
Table of Contents
Bihar Board 11th Hindi Subjective objective Question Answers
गद्य Chapter 6 मेरी वियतनाम यात्रा (भोला पासवान शास्त्री)
मेरी वियतनाम यात्रा पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
हो-ची-मीन्ह की तस्वीर अंतःसलिला फल्गू नदी की तरह लेखक के हृदय को . सींचती रही। लेखक हो-ची-मीन्ह से इतना प्रभावित क्यों है?
उत्तर-
लेखक श्री भोला पासवान शास्त्री ने जब हिन्दी के मासिक पत्रिका में पेंसिल स्केच से बनी हो-ची-मीन्ह की तस्वीर देखी, तो देखते ही रह गये। दुबली-पतली काया सादगी का नमूना प्रदर्शित कर रही थी। व्यक्तित्व बड़ा ही प्रेरक, ओजस्वी, तेजस्वी एवं जादुई प्रभाव से युक्त। चेहरे पर लहसुननुमा दाढ़ी बड़ी फब रही थी। बाह्य आकृति से आंतरिक प्रतिकृति परिलक्षित हो रही थी। उसे देखकर लेखक अभिभूत ही नहीं वशीभूत भी हो गये।
बहुत देर तक उस तस्वीर को देखते रह गये। उस तस्वीर का जादुई प्रभाव लेखक के मानस-पटल पर हमेशा अंकित रहा और उनके हृदय-प्रदेश को अंत:सलिला फल्गू नदी की भाँति सींचती रही। अभिप्राय यह कि लेखक के मन को उस महामानव की तस्वीर हमेशा प्रेरित-अनुप्राणित करती रहती है।
प्रश्न 2.
‘अंतर्राष्ट्रीयता पनप नहीं सकती, जब तक राष्ट्रीयता का पूर्ण विकास न हो।’ इस कथन पर विचार करें और अपना मत दें।
उत्तर-
हमारी पाठ्य-पुस्तक दिगंत भाग-I में संकलित ‘मेरी वियतनाम यात्रा’ शीर्षक पाठ में लेखक भोला पासवान शास्त्री ने वियतनाम के महान नेता हो-ची-मीन्ह के प्रति बड़े सम्मान और श्रद्धा का भाव प्रदर्शित किया है। उन्होंने उनके महान व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उन्हें न केवल एक अप्रतिम देशभक्त कहा है, अपितु विश्वद्रष्टा भी बताया है।
इस संदर्भ में ही लेखक ने अपना यह सारगर्भित और सत्यपूर्ण विचार व्यक्त किया है कि जब तक राष्ट्रीयता का पूर्ण विकास न हो, तब तक अंतर्राष्ट्रीयता भी नहीं पनप सकती। लेखक का यह अभिमत अनुभव सिद्ध व्यावहारिक एवं युक्ति-युक्त है। अंतर्राष्ट्रीयता यह भी वस्तुतः राष्ट्रीयता की भावना का ही परिधि-विस्तार है। अतः जब तक हमारे अंदर राष्ट्रीयता की भावना बलवती न होगी, हम अंतर्राष्ट्रीयता की भावना को भी आत्मसात न कर सकेंगे।
यद्यपि कुछ लोगों के अनुसार राष्ट्रीयता अंतर्राष्ट्रीयता की बाधिका है, पर हमें ऐसा एकदम नहीं लगता। वास्तव में जो व्यक्ति अपने राष्ट्र को अपना नहीं समझ सकता, वह व्यापक विश्व समाज को अपना कदापि नहीं समझ सकता। अतः हम लेखक की उपर्युक्त कथन से पूरी तरह सहमत हैं।
प्रश्न 3.
हो-ची-मीन्ह केवल वितयनाम के नेता बनकर नहीं रहे। वे विश्वद्रष्टा और विश्वविश्रुत हुए। पाठ के आधार पर उनके व्यक्तित्व की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
हो-ची-मीन्ह को यदि वितयनाम का गाँधी कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति न होगी। हो-ची-मीन्ह एक महान् वियतनामी नेता थे। उन्होंने विदेशी साम्राज्यवाद के शिकंजे में जकड़े वितयनाम को मुक्त कराने में अमूल्य योगदान किया, वितयनाम की जनता को गुलामी से छुटकारा दिला कर निरंतर उन्नति की दिशा में अग्रसर होने के लिए मार्गदर्शन किया। उन्होंने एक प्रकाश से संपूर्ण विश्व को क्रांति, त्याग और बलिदान का पाठ पढ़ाया। फलतः उनकी लोकप्रियता वियतनाम तक ही सीमित न रहकर विश्व भर में फैली और वे विश्वविख्यात हुए।
वस्तुतः हो-ची-मीन्ह एक महापुरुष थे, महामानव। उनके व्यक्तित्व में अनेक उच्च मानवीय गुणों का वास था। उनका व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली था। वे ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की साक्षात् प्रतिमूर्ति थे तथा ‘अपना काम स्वयं करो’ की नीति पर चलते थे। अपने कठिन एवं अनथक संघर्षों के परिणामस्वरूप जब वे स्वतंत्र वियतनाम के राष्ट्रपति बने, तब भी शाही महल को छोड़ एक साधारण मकान में जीवन-स्तर किये। वे अपनी जरूरत के चीजें स्वयं टाइप कर लेते थे तथा कम-से-कम साधनों से अपना जीवन-निर्वाह करते थे। व्यक्तित्व के ये सभी गुण सचमुच सबके लिए आदर्श और अनुकरणीय हैं।
प्रश्न 4.
‘जिन्दगी का हर कदम मंजिल है। इस मंजिल तक पहुँचने से पहले साँस रुक सकती है।’ इस कथन का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
हमारी पाठ्य-पुस्तक के दिगंत भाग-1 में संकलित ‘मेरी वियतनाम यात्रा’ शीर्षक यात्रावृत्तांत के लेखक भोला पासवान शास्त्री ने वियतनाम यात्रा के आरंभ की अपनी मन:स्थिति के संदर्भ में विवेच्य कथन कहा है। इसका अभिप्राय यह है कि जिन्दगी का हर कदम अपने-आप में एक मंजिल के समान है। मंजिल पर पहुँचने के पश्चात् व्यक्ति क्षण भर विश्राम करता है। परंतु किस कदम पर व्यक्ति के जीवन में विराम लग जाए, नहीं कहा जा सकता। अर्थात् जीवन कब, कहां और कैसे रुक जाएगा-यह सर्वथा अज्ञात रहता है। अतः लेखक को व्यक्ति का हर कदम एक मंजिल जैसा प्रतीत होता है।।
प्रश्न 5.
वियतनामी भाषा में ‘हांग खोंग’ और ‘हुअ सेन’ का क्या आदर्श है?
उत्तर-
वियतनामी भाषा हांग खोंग में ‘हांग’ का अर्थ मार्ग और ‘खोंग’ का अर्थ हवा होता है। इस प्रकार हांग खोंग का अर्थ हुआ-हवाई मार्ग।
हुआ सेन-वितयनामाी भाषा में ‘हुअ सेन’ का अर्थ है-कमल का फूल।
प्रश्न 6.
लेखक को ऐसा क्यों लगता है कि मैकांग नदी के साथ उसका पहरा भावनात्मक संबंध है?
उत्तर-
हमारी पाठ्य-पुस्तक के विंगत भाग-1 में संकलित ‘मेरी वियतनाम यात्रा’ के लेखक भोला पासवान शास्त्री जब बैंकाक, अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से वितयनाम की राजधानी हानोई विमान द्वारा जा रहे थे, तो रास्ते में उन्हें अचानक एक बड़ी नदी दिखाई पड़ी। तत्पश्चात् पार्थ सारथी से उन्हें यह मालूम हुआ कि मैकांग नदी है। यह सुनकर लेखक उस नदी के प्रति भाव-विभोर हो गये। उन्हें लगने लगा कि उसके साथ उनका बहुत पुराना नाता-रिश्ता है। ऐसा इसलिए अनुभूल हुआ, क्योंकि लेखक उस नदी का नाम पहले से सुन चुके थे।
अमेरिका बनाम वियतनाम के युद्ध में उस नदी का जिक्र दुनिया भर के समाचार पत्रों में हो चुका था। इस प्रकार, उसका साक्षात् दर्शन कर लेखक उसके साथ गहरे भावनात्मक स्तर पर जुड़ जाते हैं। इसके अतिरिक्त एक यह भी विचित्र संयोग है कि उस नदी को वहाँ के लोग ‘महागंगा’ के नाम से जानते-पहचानते हैं। गंगा अपने देश की पवित्रतम नदी है। इन्हीं सब बातों के कारण लेखक मैकांग नदी के साथ अपना प्रगाढ़ भावनात्मक संबंध महसूस करता है।
प्रश्न 7.
हनोई साइकिलों का शहर है। हम इस बात से क्या सीख सकते हैं?
उत्तर-
हानोई वियतनाम जैसे देश की राजधानी है। उसकी अन्य अनेक विशेषताओं में एक प्रमुख विशेषता है साइकिल की सवारी। वहाँ के सभी लोग साइकिलों पर ही सवार होकर यत्र-तत्र-सर्वत्र आते-जाते, घूमते-फिरते हैं। वहाँ ट्रक, बस और मोटरगाड़ियों का राष्ट्रीयकरण हो चुका है, अतएव कोई इन चीजों को निजी संपत्ति के तौर पर नहीं रख सकता। इस प्रकार हानोई साइकिलों का शहर है। इससे हमें यह सीख लेनी चाहिए कि हमें भी अपनी सवारी के लिए प्रदूषण फैलाने वाली मोटरगाड़ियों को छोड़कर साइकिल का ही अधिक-से-अधिक प्रयोग करना चाहिए।
इससे हमारा स्वास्थ्य भी बनेगा, बचत भी होगी और प्रदूषण भी नहीं होगा।
प्रश्न 8.
लेखक ने हो-ची-मीन्ह के घर का वर्णन किस प्रकार किया है? इससे हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर-
लेखक भोला पासवान शास्त्री ने विश्वद्रष्टा एवं विश्वविश्रुत नेता हो-ची-मीन्ह के घर का वर्णन बड़ी अंतरंगता के साथ किया है। उन्होंने आत्मीयतापूर्वक वर्णन-क्रम में बताया है कि वह साधारण-सा छोटा मकान है। उसमें कुल दो कमरे हैं और चारों ओर बरामदें हैं। एक कमरे में उनकी खाट रखी है, जिस पर वे सोते थे। खाट पर बिछावन और ओढ़ने के कपड़े भी समेट कर रखे हुए हैं। एक तकिया और एक छड़ी भी है। ऐसी ही छोटी-मोटी कुछ और चीजें भी रखी हैं। दूसरे कमरे में उन्हीं द्वारा रचित कुछ पुस्तकें हैं। बरामदे में लकड़ी की बनी बेंच रखी हुई थी, जिस पर मुलाकाती लोग आकर बैठते थे।
इस प्रकार, उस महान् नेता का मकान सब तरह से साधारण था। इससे यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अपना जीवन सादगीपूर्ण ढंग से बिताना चाहिए। हमें कम-से-कम साधनों से अपना काम चलाना चाहिए तथा व्यर्थ के ताम-झाम या तड़क-भड़क में नहीं पड़ना चाहिए। इसी में हमारी भलाई और महत्ता निहित होती है।
मेरी वियतनाम यात्रा भाषा की बात
प्रश्न 1.
लेखक ने हो-ची-मीन्ह के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है? पाठ से उन विशेषणों को चुनें।
उत्तर-
‘मेरी वियतनाम यात्रा’ शीर्षक पाठ में लेखक ने हो-ची-मीन्ह के लिए निम्नलिखित विशेषणों का प्रयोग किया है-महामानव, मसीहा, प्रेरणाप्रद, चमत्कारी, तेजस्वी, सव्यसाची, महापुरुष, विश्वद्रष्टा, विश्वविश्रुत, सर्वप्रिय नेता इत्यादि।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्य-प्रयोग द्वारा लिंग-निर्णय करें:
उत्तर-
- नीधि (पुलिंग)-यह मेरी एकमात्र निधि है।
- स्केच (पुलिंग)-उग्रवादियों का स्केच जारी किया गया।
- प्रण (स्त्रीलिंग)-उसके प्राण निकल गये।
- सुधि (पुलिंग)-उसने मेरी सुधि न ली।
- तस्वीर (स्त्रीलिंग)–यह तस्वीर पुरानी है।
- विभूति (स्त्रीलिंग)-यह दुर्लभ विभूति कहाँ थी?
- संपत्ति (स्त्रीलिंग)-यह किसकी संपत्ति है?
- संरक्षण (स्त्रीलिंग)-हमें राष्ट्रीय धरोहरों का संरक्षण करना चाहिए।
- दाढ़ी (स्त्रीलिंग)-उनकी दाढ़ी पक गई।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के प्रत्यय निर्दिष्ट करें:
उत्तर-
शब्द – प्रत्यय
राजनीतिक- इक
विदेश- ई
राष्ट्रीयता- ता
जीवंतता- ता
नागरिक- इक
अन्तर्राष्ट्रीयता- ता
वातानुकूलित- इत
औपनिवेशिक- इक
प्रश्न 4.
इन शब्दों के उपसर्ग निर्दिष्ट करें:
उत्तर-
शब्द- प्रत्यय
उन्नति- उत्
परिलक्षित- परि
प्रतिकृति- प्रति
अपूर्व- अ
स्वागत- सु
प्रश्न 5.
अर्थ की दृष्टि से निम्नलिखित वाक्यों की प्रकृति बताएँ:
उत्तर-
(क) दिन बीतते गए। – विधानवाचक वाक्य।।
(ख) हो सकता है दो-चार वर्ष और पहले ही हो। – संदेहवाचक वाक्य।
(ग) इसमें संदेह नहीं कि उनका जीवन कभी नहीं सूखने वाले प्ररेणा-स्रोत के समान बना रहेगा। – विधानवाचक वाक्य।
(घ) वे कौन हैं, कहाँ के हैं और क्या हैं, जानने की सुधि भी नहीं रही। – उद्गारवाचक वाक्य।
प्रश्न 6.
पाठक से प्रत्येक कारक के कुछ उदाहरण चुनकर लिखें।
उत्तर-
[ज्ञातव्य-संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका संबंध सूचित होता है, उसके कारक कहते हैं। हिंदी में कारक के आठ भेद माने जाते हैं- कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान, संबंध, अधिकरण और संबोधन कारक।]
प्रस्तुत पाठ में प्रयुक्त कारकों के उदाहरण निम्नवत हैं :
- कर्ता कारक-मित्रों ने ‘यात्रा शुभ हो’ कहकर विदा किया।
- कर्मकारक-बिछावन पर आज का ‘बैंकाक पोस्ट’ रखा था।
- करण कारक-हमलोग एयर इंडिया के विमान से वियतनाम के लिए रवाना हुए।
- संप्रदान कारक-अधिकांश यात्री पहले ही एयरपोर्ट से शहर के लिए प्रस्थान कर चुके थे।
- अपादान कारक-जब बिहार से दिल्ली आया तो सबसे पहले मुझे मॉरीशस जाने का मौका मिला।
- संबंध कारक-हमलोगों की घड़ी में डेढ़ बज रहे थे।
- अधिकरण कारक-हम एयर इंडिया के बोइंग विमान 707 में आ गए।
- संबोधन कारक-यात्रा शुभ हो, भारत और वियतनाम की मित्रता दृढ़ हो।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
मेरी वियतनाम यात्रा लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
हो ची मीन्ह कौन थे? वियतनाम में उनके योगदान का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
होचीमीन्ह वियतनाम के महान नेता और राजनीतिज्ञ थे। वियतनाम की राजनीति में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। आज से लगभग 90 वर्ष पहले जब वियतनाम विदेशी साम्राज्यवाद के शिकंजे में जकड़ा हुआ था तं. इस महान राजनेता ने उनसे वियतनाम के लोगों को स्वतंत्र कराया। उन्होंने वियतनाम की जनता को गुलामी से मुक्ति दिलाकर देश की उन्नति कराने में मार्ग-दर्शन किया। वियतनाम की आजादी और उसकी प्रगति में होचीमीन्ह ने प्रमुख भूमिका निभाया। इसीलिए वियतनाम में लोग इन्हें आदर की दृष्टि से देखते हैं।
प्रश्न 2.
लेखक भोला पासवान शास्त्री का बिहार में कैसा स्थान है?
उत्तर-
भोला पासवान शास्त्री का बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। ये बिहार के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, प्रबुद्ध पत्रकार और राजनेता थे। वे सिद्धांतों और मूल्यों की राजनीति करने वाले राजनेता थे। बिहार के प्रबुद्ध नागरिकों, राजनीतिकर्मियों और बुजुर्ग पत्रकारों के बीच अपनी सादगी, लोकनिष्ठा, देशभक्ति, पारदर्शी ईमानदारी और विचारशीलता के लिए वे बहुत महान राजनेता माने जाते हैं। बिहार की राजनीति में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
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मेरी वियतनाम यात्रा अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मेरी वियतनाम यात्रा नामक पाठ की रचना किस लेखक ने की है:
उत्तर-
मेरी वियतनाम यात्रा नामक पाठ की रचना भोला पासवान शास्त्री ने की है। .
प्रश्न 2.
भोला पासवान शास्त्री कौन थे?
उत्तर-
भोला पासवान शास्त्री बिहार के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, प्रबुद्ध पत्रकार एवं राजनेता थे।
प्रश्न 3.
मेरी वियतनाम यात्रा किस प्रकार की रचना है?
उत्तर-
मेरो वियतनाम यात्रा एक संस्मरण है।
प्रश्न 4.
भोला पासवान शास्त्री कितनी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने?
उत्तर-
भोला पासवान शास्त्री मार्च 1968 से जनवरी 1972 तक की अवधि में तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री बने।
प्रश्न 5.
होचीमीन्ह कौन थे?
उत्तर-
होचीमीन्ह वियतनाम के एक प्रमुख राजनेता थे।
प्रश्न 6.
होचीमीन्ह का क्या योगदान था?
उत्तर-
होचीमीन्ह ने वियतनाम को विदेशी साम्राज्यवाद के शिकंजे से मुक्ति दिलायी। उन्होंने वियतनाम की जनता को गुलामी से मुक्ति दिला कर विकास की दिशा के आगे बढ़ने के लिए मार्ग-दर्शन किया।
मेरी वियतनाम यात्रा वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
सही उत्तर का सांकेतिक चिह्न (क, ख, ग, या घ) लिखें।
प्रश्न 1.
‘मेरी वियतनाम यात्रा’ के लेखक कौन हैं?
(क) राम विलास पासवान
(ख) भोला पासवान शास्त्री
(ग) हरिशंकर परसाई
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख)
प्रश्न 2.
‘मेरी वियतनाम यात्रा’ क्या है?
(क) संस्मरण
(ख) निबंध
(ग) यात्रावृत्तांत
(घ) रेखा चित्र
उत्तर-
(ग)
प्रश्न 3.
हो-ची-मीन्ह कहाँ के नेता थे?
(क) वियतनाम
(ख) चीन
(ग) जापान
(घ) मलेशिया
उत्तर-
(क)
प्रश्न 4.
हुअ-सेन का क्या अर्थ है?
(क) नदी
(ख) कमल का फूल
(ग) झरना
(घ) समुद्र
उत्तर-
(ख)
प्रश्न 5.
‘मेरी वियतनाम यात्रा’ का प्रकाशन कब हुआ?
(क) 1973 ई० में
(ख) 1983 ई० में.
(ग) 1993 ई० में
(घ) 1995 ई० में
उत्तर-
(ख)
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय पनप नहीं सकती जब तक…………..का पूर्ण विकास न हो।
उत्तर-
राष्ट्रीयता
प्रश्न 2.
मित्रों ने……………….कहकर विदा किया।
उत्तर-
‘यात्र शुभ हो’
प्रश्न 3.
वियतनामी भाषा में ‘हाँग का अर्थ……..और खोंग का अर्थ……..होता है।
उत्तर-
मार्ग, हवा
प्रश्न 4.
अब भी वह एक युग का……………करता दीखता है।
उत्तर-
प्रतिनिधित्व
प्रश्न 5.
श्री हो-ची-मीन्ह…………..के सर्वप्रिय नेता रहे।
उत्तर-
वियतनाम
मेरी वियतनाम यात्रा भोला पासवान शास्त्री (1914-1984)
एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, प्रबुद्ध पत्रकार एवं लोकप्रिय राजनेता भोला पासवान शास्त्री का जन्म सन् 1914 ई० में बिहार राज्य के पूर्णिया जिलान्तर्गत ‘बैरगाछी’ नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री धूसर पासवान था। भोला पासवान शास्त्री की शिक्षा बिहार विद्यापीठ, पटना एवं तदनंतर काशी विद्यापीठ, वाराणसी से हुई। बिहार के एक पिछड़े हुए सुदूर अंचल के वंचित वर्ग का होते हुए भी शास्त्रीजी अपने नैतिक योग्यता, बौद्धिक क्षमता और व्यक्तिगत गुणों के बल पर देश के राजनीतिक एवं सार्वजनिक जीवन में काफी आगे बढ़े और अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बनाया।
शास्त्रीजी में बचपन से ही देशभक्ति, समाज-सेवा, ईमानदारी, सच्चरित्रता, विचारशीलता जैसी उदान्त भावनाएँ कूट-कूट कर भरी हुई थीं। वे छात्र-जीवन से ही स्वाधीनता आंदोलन और राजनीति में सक्रिय रहे। 1942 ई० के राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण उन्हें 21 माह का कठोर कारावास का दंड मिला। अपनी कर्मठता एवं जन-सेवा के बल पर वे 1946 ई० में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के सदस्य बने।
जनता में पर्याप्त प्रसिद्ध शास्त्रीजी 1952 ई० के पहले आम चुनाव में धमदाहा-कोढ़ा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुने गये और डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल हुए। इसी प्रकार, 1957, 1962 एवं 1967 के आम चुनावों में वे विधायक चुने जाते रहे और मार्च, 1968 से जनवरी, 1972 तक की अवधि में तीन बार बिहार क मुख्यमंत्री चुने गये और फरवरी, 1973 के केन्द्र सरकार के मंत्री बने और 1982 ई० तक संसद सदस्य के रूप में राष्ट्र एवं समाज की सेवा करते रहे। उनका निधन 10 सितंबर, 1984 ई० को हुआ।
शास्त्रीजी सच्चे अर्थों में बिहार के एक श्रेष्ठ राजनेता एवं समाजसेवी थे। वे ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के कायल थे। राजनीतिक हलकों में उन्हें आज भी बड़े आदर और सम्मान के साथ याद किया जाता है। वे सिद्धांतों और मूल्यों की राजनीतिक करने वाले तपे-तपाए नेता थे, स्वार्थसिद्धि हेतु गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले अवसरवादी नेता नहीं। उनकी सादगी, लोकनिष्ठा, देशभक्ति, सेवापरायणता आदि की आज भी दाद दी जाती है। कोई भी प्रलोभन उन्हें कर्तव्यपथ से विचलित नहीं कर सकता था।
उनकी दृष्टि से सभी देशवासी समान थे। उनके लिए जाति अथवा वर्ग-विशेष प्रधान न था, बल्कि वे संपूर्ण समाज एवं उनकी मुख्य धारा को साथ ले चलने वाले थे। भारतीय परंपरा के प्रति उनके मन में गहरा अनुराग था तथा वे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की भी गहरी समझ रखते थे। उनका आदर्श सामाजिक समानता और सद्भाव के स्वप्न को साकार करना था। इसके लिए जीवन भर सजग एवं सचेष्ट रहे। विशेषकर आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए किया गया उनका संघर्ष सदैव स्मरणीय रहेगा।
शास्त्रीजी अपने जीवन में न केवल राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय रहे, अपितु रचनात्मक सृजन में भी संलग्न रहें। उन्होंने पूर्णिया से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक पत्रिका ‘राष्ट्र-संदेश’ का संपादन किया था तथा पटना के दैनिक ‘राष्ट्रवाणी’ एवं कोलकाता के दैनिक पत्र ‘लोकमान्य’ के संपादक-मंडल में भी सदस्य के रूप में रहे। उनकी प्रमुख कृति ‘वियतनाम की यात्रा’ 1983 ई० में वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई। उनके अन्य लेख, टिप्पणियाँ अब तक अप्रकाशित रूप में यत्र-तत्र बिखरे हैं, जिन्हें प्रकाशित किया जाना चाहिए।
मेरी वियतनाम यात्रा पाठ का सारांश
हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘मेरी वियतनाम यात्रा’ शीर्षक यात्रावृत्त के लेखक बिहार के एक प्रमुख राजनेता स्व० भोला पासवान शास्त्री हैं। यह पाठ उनकी पुस्तक ‘वियतनाम की यात्रा’ का एक अंश है, जिसमें यात्रा-लेखक के रूप में शास्त्रीजी ने अपनी वियतनाम यात्रा का अत्यंत रोचक एवं प्रभावकारी अंकन किया है।
पाठारंभ बड़ा ही रोचक, कुतूहलजनक एवं जिज्ञासावर्द्धक है। लेखक बताता है कि लगभग 40-42 वर्ष पहले एक दिन जब वह हिंदी की किसी मासिक पत्रिका के पन्ने उलट-पुलट रहा था कि अचानक पेंसिल स्केच की एक अनोखी तस्वीर देख ठिठक गया। वह तस्वीर वियतनाम के विश्वद्रष्टा एवं विश्वविश्रुत व्यक्ति हो-ची-मीन्ह की थी। लेखक उनके व्यक्तित्व से अभिभूत हो उठता है।
वह व्यक्तित्व अपनी सादगी और सरलता में अत्यंत तेजस्वी और प्रभावशाली था। आज भी वर्षों पूर्व देखी गई वह तस्वीर अक्षुण्ण है तथा अंतः सलिला फल्गू नदी की भाँति उनके. हृदय-प्रदेश को सींचती रहती है। तत्पश्चात् हो-ची-मीन्ह के प्रेरणादायी व्यक्तित्व एवं कृतित्व की संक्षिप्त चर्चा कर वर्णन को आगे बढ़ा देता है।
लेखक ने बताया है कि जब वे बिहार से दिल्ली आये तो सबसे पहले उन्हें मॉरीशस जाने का मौका मिला और मौका पाते ही वहाँ चले जाते हैं। वियतनाम यात्रा के साथ भी यही बात है। उनकी जीवनयात्रा के करीब दस दिन वियतनाम में व्यतीत हुए हैं। लेखक एयर इंडिया के बोइंग विमान-707 में वियतनाम की यात्रा के लिए सवार हुए। विमान तेज गति से बैंकाक की ओर चल पड़ा। बैंकाक तक की उनकी विमान यात्रा सुखद रही।
वहाँ होटल ओरिएंट में उन्हें ठाहराया गया। होटल में रात्रि विश्राम के पश्चात् वे लोग बैंकाक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुँचे। वहीं से उन लोगों को वियतनाम की राजधानी हानोई पहुंचना था। बैंकाक से हानोई के लंबे सफर में मैकांग नदी (जो वहाँ महागंगा के नाम से मशहूर है) को देख लेखक बड़ी आत्मीयता महसूस करते हैं, क्योंकि वे उसका नाम सुन चुके थे। देखते-देखते विमान वेंचियन हवाई अड्डा पहुंचा।
वहाँ सभी यात्री विमान से उतरकर कैंटिन में चावल की बनी पावरोटी और चाय लेते हैं और पुनः विमान में अपना-अपना स्थान ग्रहण कर लेते हैं। कुल डेढ़ घंटे में विमान जियालाम हवाई अड्डा जा पहुंचा। यही हवाई अड्डा हानोई से नजदीक है। वहाँ इन लोगों के स्वागत की अच्छी-खासी तैयारी थी। वितयनामी ‘कमिटी ऑफ सोलिडिरेटी एंड फ्रेंडशिप विद दी पीपुल्स ऑफ ऑल कंट्रीज’ के पदाधिकारियों और उनके सहयोगियों ने बड़े प्रसन्न भाव से गुलदस्ता भेंट कर इनका स्वागत-सत्कार किया।
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जियालाम अंतर्देशीय हवाई अड्डे से निकलकर लेखक शास्त्रीजी वहाँ की सरकार द्वारा भेजी गई मोटरगाड़ी पर सवार होकर हानोई के लिए रवाना होते हैं। उनके साथ उक्त कमिटी के एक वरीय सदस्य और दुभाषिए के रहने का भी प्रबंध था। सड़क-मार्ग से गुजरते हुए रास्ते के अनेक स्थलों को निहारते हुए वे अतिथिशाला के पास आये। यह अतिथिशाला औपनिवेशक काल में ही बनी थी। वहाँ इनके स्वागत में भव्य तैयारी थी।
सड़क के दोनों ओर रंग-बिरंग वेश में बालक-बालिकाएँ जवान और वृद्ध हाथों में गुलदस्ता लिखे खड़े थे और अपनी मातृभाषा में गाना गाकर स्वागत करते हुए ‘भारत और वियतनाम की मित्रता दृढ़ हो’ के नारे भी लगा रहे थे। शास्त्रीजी वहाँ बड़े प्रेम-भाव से सबसे मिले और थोड़ी देर बाद फिर जुलूस के रूप में नयी बनी राजकीय अतिथिशाला में पहुंचे। वहीं उनलोगों के रहने की व्यवस्था थी। वहाँ उन्हें बिना दूध की चाय दी गई, जो अच्छी न लगी। भोजनोपरांत थोड़ी देर के विश्राम के बाद शाम को ठीक पाँच बजे वे लोग शहर की ओर निकले।
वहाँ उनके साथ वियतनाम पीपुल्स पार्टी के एक वरीय सदस्य और दुभाषिया बराबर रहते थे। वे लोग शहर के सामान्य दृश्यों को देखते हुए वेस्ट लेक पहुँचे। वहाँ के सन्दर्भ में दो बातें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-पहली, चूँकि हानोई शहर में चार-पाँच झीलें हैं, इसलिए वह झीलों का नगर कहलाता है तथा दूसरे, वहाँ की निजी सवारी है साइकिल। अत: वह साइकिलों का शहर लंगता है।।
दूसरे दिन शास्त्रीजी खूब तड़के जगे और साढ़े छह बजे घूमने के लिए पूरी तरह तैयार हो गये। इस दिन का उनका कार्यक्रम अतिशय प्रेरक और महत्त्वपूर्ण रहा। इसी दिन उन्होंने हो-ची-मीन्ह मसालियम जाकर उस महान नेता के पार्थिक शरीर के दर्शन कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। उस समय लेखक की मनःस्थिति अवर्णनीय थी। वहाँ से वे लोग उस शाही महल को देखने गये, जिसमें, फ्रांसीसी गवर्नर जनरल रहते थे।
तत्पश्चात् वे लोग राष्ट्रपति हो-ची-मीन्ह जहाँ रहते थे, उस साधारण मकान को देखने गये। वहाँ पर उन्हें जो-जो चीजें देखने को मिलीं, उनसे राष्ट्रपति हो-ची-मीन्ह के महान व्यक्तित्व की झांकी सहज ही मिलती है। इसके बाद उन लोगों ने उस महान को भी देखा, जिसमें हो-ची-मीन्ह राष्ट्रपति बनने से पूर्व रहा करते थे। फिलहाल वहाँ कोई नहीं रहता है और उसे राष्ट्र का संरक्षण प्राप्त है। वह स्थान लेखक के अंतर्मन को छू जाता है। वहा वियतनाम की जनता की धरोहर और प्रेरणास्रोत है। वहाँ जाकर सुप्त आत्मा भी जाग्रत हो जाता है। वास्तव में हो-ची-मीन्ह वियतनाम के सर्वप्रिय नेता थे।
उनका महत्त्व वहाँ जाने पर ही जाना जा सकता है और इन्हीं हार्दिक उद्गारों के साथ पइित यात्रा-वृत्तान्त समाप्त हो जाता है। इस प्रकार, लेखक ने इस यात्रा-वृत्त में अपनी वियतनाम यात्रा के सारे अनुभवों, व्यक्तियों, वस्तुओं, घटनाओं एवं स्थानों का वर्णन बड़ी अंतरंगता से प्रस्तुत किया है।
मेरी वियतनाम यात्रा कठिन शब्दों का अर्थ
स्मृति-याद। अन्यमनस्क भाव-अनमने भाव से। सव्यसाची-बायाँ-दायाँ दोनों हाथ से निशाना साधने वाला, अर्जुन के लिए रूढ़। फबना-शोभित होना। परिलक्षित-प्रकट दिखाई पड़ना। निधि-खजाना। गुलदस्ता-पुष्पगुच्छ, फूलों का गुच्छा। औपनिवेशिक काल-जब वियतनाम पर दूसरे देश का शासन था। तेजस्वी-तेजपूर्ण। मैजेस्टिक-जादुई। सद्यःस्नात-तुरंत स्नान किया हुआ। सुधि-स्मृति, ध्यान। हरफों-अक्षरों। अंत:सलिला-अन्दर-ही अन्दर प्रवाहित होने वाली नदी। विभूति-ऐश्वर्यमय व्यक्ति। विश्व-विश्रुत-विश्वविख्यात। पार्थिव-लौकिक। दुभाषिया-ऐसा व्यक्ति जो दो भिन्न भाषा-भाषियों के बीच बातचीत करता है। शिकंजा-कैद, पकड़। पैगाम-संदेश।
अन्तर्राष्ट्रीयता पनप नहीं सकती, जब तक राष्ट्रीयता का पूर्ण विकास न हो। इसके लिए उन्होंने क्रांति, बलिदान और त्याग का पैगाम किया। इसीलिए वे विश्वद्रष्टा कहलाए और विश्व-विश्रुत हुए।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ भोला पासवान शास्त्री द्वारा लिखित मेरी वियतनाम यात्रा नामक संस्मरण से ली गयी है। इन पंक्तियों में लेखक ने वियतनाम के महान नेता होचीमीन्ह के व्यक्तित्व के बारे में वर्णन किया है। होचीमीन्ह एक महान क्रांतिकारी नेता थे और उन्होंने विदेशी साम्राज्यवाद से वियतनाम को स्वतंत्र कराया। उन्होंने अपने जीवन-काल में क्रांति, बलिदान और त्याग का पैगाम दिया। इसीलिए लेखक के अनुसार होचीमीन्ह विश्वद्रष्टा और विश्व प्रसिद्ध हुए। जब वियतनाम स्वतंत्र हुआ तो वे यहाँ के राष्ट्रपति बने। वास्तव में, वे वियतनाम के निर्माता थे।
होचीमीन्ह मसोलियम राष्ट्र को समर्पित है, उसे राष्ट्र का संरक्षण प्राप्त है, वह वियतनाम की जनता की धरोहर है, प्रेरणा-स्त्रोत है।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ भोला पासवान शास्त्री द्वारा लिखित मेरी वियतनाम यात्रा नामक संस्मरण से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने होचीमीन्ह मसोलियम को आधार बनाकर होचीमीन्ह के व्यक्तित्व को उजागर किया है। इस महान राजनेता ने वियतनाम की जनता को गुलामी से मुक्ति दिलाकर प्रगति की दिशा में अग्रसर करने के लिए मार्ग-दर्शन किया। वे वियतनाम के निर्माता और राष्ट्रपति बने। उनके मसोलियम को देखकर होचीमीन्ह की स्मृति हो आती है। यह मसोलियम राष्ट्र को समर्पित है, जिसे राष्ट्र का संरक्षण भी प्राप्त है। वास्तव में, वह वियतनाम की जनता की धरोहर और प्रेरणा स्त्रोत है। इस मसोलियम से होचीमीन्ह के महान योगदान का ज्ञान होता है।
गद्य खण्ड पाठ 7: सिक्का बदल गया (कृष्णा सोबती)
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